साधारण असाधारण
साधारण- असाधारण
सूर्य की अस्त होती लालिमा में
सुगन्धित वायु के आंदोलन से
घुंघरुओं के मदमस्त संगीत में
तपस्वी विश्वामित्र ने
जब
ऑंखें खोली
तो
उस पल
वह
ऋषि न रह
नैसर्गिक पुरुष हो उठे
परन्तु
उत्तरदाईत्व के पल में
वे भाग उठे
उस पल वे न राजा थे
न ऋषि
लज्जित खड़ा था
मेनका का सौंदर्य और ज्ञान
वह युगल
निश्चय ही पोषक
नही हो सकता
भारतीय संस्कृति का
फिर भी
भारत नतमस्तक है
दोनों की ऊर्जाओं के समक्ष।
आइंस्टीन
कायरता के क्षण में
दे बैठे अपनी पुत्री दत्तक
किसी अनजान को
प्रकृति के सम्मान को
ठुकराने वाले को
निश्चय ही सराहा नहीं जा सकता
फिर भी
उस अतुलनीय ज्ञानधारी के समक्ष
नतमस्तक है
विज्ञान।
मनुष्य की यात्रा है
साधारण से असाधारणता की ओर
साधारणता की इस पगडंडी को
हम अपनी संवेदना दें।
न जाने कौन किस पल
साधारण से असाधारण
हो उठे ।
शशि महाजन – लेखिका