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29 Nov 2019 · 1 min read

सादगी

बचपन ममता की छाँव में था गुजरा
बंधी प्रीत की डोर यौवन जिम्मेदारी में निखरा
गृहस्थी चली कभी उभरी कभी गहरी राहों में
जीवन पतवार फॅसी कभी उथली पनाह में
सागर में सीपी से मोती जैसे निकला
कुछ इस तरह सादगी भरा जीवन उजला

जीवन की राह पर तो सब अपनों का मेला
मित्रों निज कुटुम्ब संग लगता खुशियो का डेरा
मन दर्पण स्नेह को जाने करता बात करारी
अपनो का साथ हो जैसे प्रीत की चुनर हरारी

अडिग रहा पथ पर निज कर्म उन्नति की ओर
धन सम्पदा यश वैभव की तो तनी रही डोर
रास आई मुझे स्वजनो के विश्वासों की डोर
जीवन की उलझी गुत्थी का पकड सका न छोर

कुछ और नहीं संचय कर पाया अपने हिस्से में
कर्म शीलता को महत्व दे पाया हर किस्से में
आलीशान इमारत ना झुठी शान बना पाया
बस दिलों पर अमिट पहचान मैं छोड़ आया
सागर में सीपी से मोती जैसे निकला
कुछ इस तरह सादगी भरा जीवन उजला

Language: Hindi
2 Likes · 318 Views
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