सादगी
बचपन ममता की छाँव में था गुजरा
बंधी प्रीत की डोर यौवन जिम्मेदारी में निखरा
गृहस्थी चली कभी उभरी कभी गहरी राहों में
जीवन पतवार फॅसी कभी उथली पनाह में
सागर में सीपी से मोती जैसे निकला
कुछ इस तरह सादगी भरा जीवन उजला
जीवन की राह पर तो सब अपनों का मेला
मित्रों निज कुटुम्ब संग लगता खुशियो का डेरा
मन दर्पण स्नेह को जाने करता बात करारी
अपनो का साथ हो जैसे प्रीत की चुनर हरारी
अडिग रहा पथ पर निज कर्म उन्नति की ओर
धन सम्पदा यश वैभव की तो तनी रही डोर
रास आई मुझे स्वजनो के विश्वासों की डोर
जीवन की उलझी गुत्थी का पकड सका न छोर
कुछ और नहीं संचय कर पाया अपने हिस्से में
कर्म शीलता को महत्व दे पाया हर किस्से में
आलीशान इमारत ना झुठी शान बना पाया
बस दिलों पर अमिट पहचान मैं छोड़ आया
सागर में सीपी से मोती जैसे निकला
कुछ इस तरह सादगी भरा जीवन उजला