सादगी।
दूं तुम्हें मैं नाम कोई,
या कहूँ सुन्दरता की मूरत,
कशमश में है दिल,
कि देखूं तुम्हारी सादगी,
या देखू तुम्हारी सुरत,
न तुम्हारे जैसी सादगी कहीं,
न तुम्हारे जैसा रूप कोई,
ये ज़मीं पे तुम आई,
या सर्दी की धूप कोई,
किन शब्दों में करूं तारीफ उसकी,
जो रूप तुमने पहना है,
किसी श्रृंगार कि तुम्हे ज़रूरत नहीं,
तुम्हारी सादगी ही तुम्हारा गहना है,
न मैं तुमसे मिला कभी,
न तुमसे जुड़ी कोई याद सुहानी,
जाने क्यों लगती हो मुझको,
अजनबी तुम जानी पहचानी।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।