साथ तुम्हारा
***** साथ तुम्हारा *****
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सिसक सिसक कर मैं रोया
जिस पल था तुमको खोया
जड़ तुल्य हुआ अंग प्रत्यंग
बिलख बिलख कर था रोया
संवर गया हर पल मेरा
जिस पल था तुमको पाया
रहमत थी खुदा की मुझ पर
तुम जैसा साथी पाया
स्वर्ग तुल्य दिन धरती पर
रब्ब तुल्य साथी पाया
खो गया अब साथ तुम्हारा
किस की नजरों ने खाया
किस बात पर तुम खफा थे
कारण समझ नहीं पाया
अब तक करूँ सोच विचार
मनहूस दिवस क्यों आया
किन शब्दों से हुए विचलित
तुम्हे क्या पंसद ना आया
मिल जो जाता गर अवसर
तुम संग रहते बन साया
सुखविन्द्र का दिल तुम्हारा
बन जाओ तुम हमसाया
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)