जिंदगीनामा
साथ तुम्हारा
भावनाऐं आहत होती हैं
जब उम्मीदें टूटती हैं
सब्र भी इम्तिहान लेता है,
घरौंदे का हमेशा ख्याल रखिए।
मुनासिब है घर में खो जाना
पेशाने पे लिखे फसाने में
रूह की बेखयाली में भी
परिंदों सा हौसला रखिए।
हर रोज दस्तक देता हूं
सुबह की खिली धूप की तरह
अलसाई आंखों में भी
आंसूओं का सबब ढ़ूंढ़ लीजिए।
वक्त बेवक्त इकरार कर लीजिए
अपनी नाकामियों को भी मंजिल का पता दीजिए
बेआबरू होकर भी तन्हा क्या जीना
अपनो के भरोसे का भी इंतजाम कर लीजिए।
क्या पता कि चलकर साथ दो कदम
आईना भी मुस्कुराए, फिर
उठाकर आंख बेरूखी से
फासलों का हाल सुनाए।
गुनगुनाओ साथ में, मुश्किलों में
यह उम्र – ए – हकीकत है
सब्र भी इम्तिहान लेता है
धरौंदो का हमेशा ख्याल रखिए।