साथ जीने के लिए
* गीतिका *
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मिल सकी हमको न खुशियां साथ जीने के लिए।
चाहिए अब दर्द के दो घूंट पीने के लिए।
थक चुका हूं स्वप्न सब साकार होते क्यों नहीं।
दाद मिलनी चाहिए बहते पसीने के लिए।
पारदर्शी मन सुकोमल भावनाओं से भरा।
खूबसूरत तन बदन हो वस्त्र झीने के लिए।
ऋतु बसंती का असर हर ओर बढ़ता जा रहा।
बह रही शीतल हवा हर पुष्प भीने के लिए।
पारखी ही जानता बहुमूल्य पत्थर कौन है।
स्वर्ण आभूषण बनें सुन्दर नगीने के लिए।
चैन से जीवन बिताने को सुखद पल भी मिलें।
आय भी कुछ हो सुनिश्चित हर महीने के लिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/११/२०२२