साथ अधूरे थे.. ..
भाव भी गहरे थे
राज भी सुनहरे थे
बस चेहरे की रंगत
फीकी पड़ गयी थी
क्योंकि साथ अधूरे थे!
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शब्दों को ढालने
की कोशिश की
लफ्जों को सहेजने
की कोशिश की
तराश ही ना पाये
हीरे की रंगत
क्योंकि साथ अधूरे थे!
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याद आती रही
बीते पलों की
उदासी छाती रही
दिलों में!
बसे ना सके फिर से
आशियाना
क्योंकि जज़्बात अधूरे थे!
.
दिन भर शिकस्त
खाते रहे
महसूस होता रहा
अकेलापन
किसी से कुछ कह
भी ना पाये!
क्योंकि कुछ सवाल अधूरे थे!
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जाने कब मिटेगा
अधूरापन
अपनों का होगा समागम
चाहा तो हर रोज
सबसे मिलना
पर मुमकिन न हो सका
क्योंकि जीने के एहसास अधूरे थे!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)