साथी
साथी का कोई निश्चित पैमाना नहीं है
जो साथ निभाए वही साथी होता है
भाई, बहन, मां बाप, सगे संबंधी
अथवा कोई रिश्तेदार,
मित्र, पड़ोसी या सहयोगी हो
या फिर जीवन साथी हो
कोई भी हो सकता है हमारा साथी
उसके रुप अलग अलग हो सकते हैं।
सच्चा साथी हम उसे ही कह सकते हैं
जो सुख दुख में हमारा साथ दे
हमारी ताकत हमारा संबल बने।
जब हम हार रहे हों
निराशा के भवंर में डूबते जा रहे हों
अवसाद की दलदल में धंसते जा रहे हों,
कुंठाग्रस्त हो अपने आप से अन्याय करने लगे हों
तब साथी की पहचान होती है
जो अपना सब कुछ दांव पर लगा देता हो
हममें अपने आप को देखता हो
हमारे वजूद के साथ अपने वजूद को जोड़ लेता है
उसे ही सच्चा साथी कहा जा सकता है।
जिस पर हम आँख मूंदकर विश्वास कर सकते हों
जिसका साथ होने पर
हम आत्मविश्वास से भर जाते हों,
जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास करते हों
ऐसा कोई यदि हमारे साथ होता है
उसे ही हम वास्तव में संपूर्ण साथी कह सकते हैं
और दिल से उसे ही साथी मानते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश