साथी से मिलने का मौसम
सूखा पतझर नीचे बिखरा, नूतन कोपल उग आई है।
झूमी हर डाली मतवाली, सुरभित हरियाली छाई है।।
शाखाओं ने शृङ्गार किया , पहना हो जैसे हार नया ।
बलखाती अलबेली लतिका, दुल्हन जैसा आकार नया ।
पर्वत से चलकर पुरवइया, खूश्बू के झोंके लाई हैं ।।
धरती पर बिखरी शीतलता, वासंती शोभा छाई है।।
अंतिम अभिलाषा थी जिनकी, उन पेड़ों का यौवन निखरा ।
गुलशन के नन्हें जीवों का, मधुरस पीकर जीवन निखरा ।।
अमुआ की सुंदर डाली पर, धीरे से आया बौर नया ।
कोयल कूकी बागानों में, अलसाये अली का ठौर नया ।।
अचरज में है बूढ़ा बरगद, पीपल में आई जान नई ।
वीरान हुई जो इमली थी, चेहरे पर है मुस्कान नई ।।
रूखे-सूखे झंखाड़ों में, चेतनता का संचार हुआ ।
नीरस मानव के मन में भी, मादकता का संचार हुआ ।।
मधुमासी ये सुंदर मौसम, फूलों के खिलने का मौसम ।
भीना-भीना प्यारा मौसम, साथी से मिलने का मौसम ।।
(जगदीश शर्मा सहज ,१५/०३/२०२१)