सात फेरों में हूँ बंध गया
सात फेरों में हूँ बंध गया
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सात फेरों हूँ बंध गया।
एक खूंटे संग हूँ जड़ गया।
हुई सदा के लिए हमारी,
सुंदरी कन्या वो कुंवारी,
घर-आंगन में है जम गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
उसका हर रिश्ता हमारा,
हमारा हर रिश्ता हमारा।
विचलित मन फंस गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
हमने उसे दिल से लगाया,
उसने हमें हैं पतंग बनाया,
उड़ता-उड़ता मैं थक गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
शादी एक प्रेम समझौता,
आदमी बनता सदा खोता,
पहले दिन से ही ठग गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
जबसे देखी सुन्दर तस्वीर,
फूटी उसी पल थी तक़दीर,
हूँ उसी रंग में मैं रंग गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
रहती हरदम गलतफहमी,
सचमुच होती बड़ी वहमी,
खड़ा -खड़ा ही धंस गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
जिंदगी हुईं है धुआँ-धुआँ,
खोदा खुद हो गहरा कुआं,
मनसीरत अब तो डर गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
सात फेरों में हूँ बंध गया।
एक खूंटे संग हूँ जड़ गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)