“साड़ी”
“साड़ी”
साड़ी एक वस्त्र नहीं
जो तन को ढक देती है
साड़ी में है लज्जा नारी की,
जो सबके मन को हर लेती है
साड़ी में है भावना नारी की,
जो प्रियतम संयोग से भर देती है।
साड़ी एक वस्त्र नहीं
जो तन को ढक देती है
साड़ी है स्वाभिमान नारी का,
साड़ी है पहचान
क्यूँ न करूँ अभिमान इसका,
जिसने दिया सम्मान।
साड़ी एक वस्त्र नहीं
जो तन को ढक देती है।
✍वैशाली
2.12.2020
जकार्ता