साजिशें
हरामखोरो को आज़ादी है, काम करने वाले पाबंद रहें,
जिसको चाहें जो करें , खाएं-पीएं आनंद रहें।
साँपों को आज़ादी है, मौका है माहौल है फुफकारने का,
उनके सर में ज़हर भी है, और आदत भी है डसने की।
काम ना करने को आज़ादी है, आज़ादी से करें,
भोले- भाले को भड़काने का, साजिश रचने का यही तो मौका है।
पानी में आज़ादी है घड़ियालों को,
जितना मर्जी करे शिकार मछलियों को।
इंसां ने भी शोख़ी सीखी वहशत के इन रंगों से,
भेडियो, साँपों, और घड़ियालों से।
इंसान भी कुछ भेड़िये हैं, बाकी भेड़ों की आबादी है,
भेड़ें सब पाबंद हैं लेकिन भेड़ियों को आज़ादी है।
भेडियो के आगे भेड़ें क्या हैं, इक मनभाता शिकार है,
बाकी सारी दुनिया प्रजा, शेर अकेला राजा है।
भेड़ें दांत पिजाएँ मुस्कुराए हित अपने साध रहे हैं वर्षो से भेड़ो को यह तालीम मिली है, भेड़िये ताक़त वाले हैं।
मास भी खाएं, खाल भी नोचें, हरदम लागू जानों के,
भेड़ें काटें दौरे-ग़ुलामी बल पर गल्लाबानों के।
भेडि़यों से गोया क़ायम अमन है इस आबादी का,
भेड़ो का यूनियन बना भेड़िया, बन नेता लूट मचाया,यूनियन में सबका हिस्सा का घोटाले और ऐश किया भीड़ बने भेड़ें डर से हरदम चुप रहा। नाम न लें सम्मान का।
भेड़ो के अलावा साँप भी हैं, नीच भी, ज़हरीले भी
साँप तो बनना संभव ना है गैरत से मजबूर हैं हम,
सांपो का इलाज भी जानते है। पर अभी चुप है हम।
गिलहरियां भी हैं, चिड़ियाँ भी हैं, इस गुटबाजी के खेल में,
वो समझ ना पा रही है कैसे बचें इन सांपो के फैलाये जालों से
जिसने किया मदद हमेशा उसके खिलाफ ही खड़े है जोरो से।
आज यह किसका मुंह है आए, मुँह सरमायादारों के,
इनके मुंह में दांत नहीं, फल हैं ख़ूनी तलवारों के।
खा जाने का कौन सा गुर है जो इन सबको याद नहीं,
जब तक कोई कार्रवाई नही , इन सब को चैन नही।
धूर्त भेड़िया जो बना भेड़ो का नेता अक्ल पर जितना चाहे नाज़ करे,
बेशर्मी में जमीं में धंस जाए या चीख चिल्लाहट करे।
उसकी धूर्तई की बातें, सारी षड्यंत्र और साजिशें हैं,
भेड़ो की यूनियन की किये घोटालो से बच निकलने की घातें हैं।
जब तक इन धूर्त भेडियो और सांपो का षड्यंत्र यूनियन पर ग़ालिब है,
पहले मुझसे बात करे, जो सम्मान का तालिब है।
पर्दे में लिख रहा पर्दे में ही लिखने दो
मत उकसाओ खुल कर लिखने को
ढेरो जंग लड़ा है जीवन भर एक जंग और सही,
भीड़ के बल भले जीत जाओ, पर हमें हार स्वीकार नहीं।