साजिशें ही साजिशें….
साजिशें ही साजिशें…
साजिशें ही साजिशें।
रंजिशें ही रंजिशें।
चैन- सुकून लीलतीं,
रंजिशें औ साजिशें।
लग रहीं हर काम में,
तिकड़म औ सिफारिशें।
पूरी हों तो कैसे,
आसमां – सी ख्वाहिशें।
बढ़ा-चढ़ा चमक-दमक,
लगा रहे नुमाइशें।
झेलतीं जुल्मोसितम,
मर रही हैं ख्वाहिशें।
कहाँ क्या गुल खिलाए,
ये नयी पैदाइशें।
बंद पन्नों में पड़ीं,
अनसुनी -सी नालिशें।
न जाने बरसें कहाँ,
खुदा तिरी नवाज़िशें।
सभी सुखी रहें यहाँ,
दिल की ये गुजारिशें।
बरसें सबके आँगन,
रहमतों की बारिशें।
– © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“सृजन-सुगंध” से