साजन विरह
चित्र आधारित कुण्डलिया सृजन
रोती तेरी याद में, साजन मैं दिन रैन।
तड़प-तड़प कर जी रहीं, नही मिले सुख चैन।
नही मिले सुख चैन, निहारूँ राह तुम्हारी।
कब आओगे पास, यही इक आस हमारी।
अधरों की फरियाद, पास जो तेरे होती।
गुमसुम सी-ना आज, नहीं पल-पल यूँ रोती।
खोई गुमसुम सी-रहूँ, बहे आँख से नीर।
किंचित मन व्याकुल हुआ, साँसे हुई अधीर।
साँसे हुई अधीर, डसे मुझको तनहाई।
गयी आँख से नींद, याद साजन की आई।
सून लगे संसार , नही है अपना कोई।
रहूँ याद में लीन, सदा गुमसुम सी-खोई।
अदम्य