साजन विधा कह मुकरियां
विधा कह मुकरियां
रात भयी वह मोहे सताये
दिल को मेरे चैन ना आये।
है नही कोई लगे मेरा अपना
है सखी साजन,ना सखी सपना।।
छीन गयी निदिया,
ले गया बिदिया।
लगे वो कितना प्यारा,
है सखी साजन,न सखी तारा।।
कितना तेरा किया इतंजार
भूली नही अब तक तेरा प्यार।
ना जाने क्यूँ तू मुझ को भुला
है सखी साजन,ना सखी झूला।।
बदन सा मेरा वो सहलाये
रातों को भी कितना सताये
उस की बातों में हो जाती मगन
है सखी साजन,ना सखी पवन।।
✍संध्या चतुर्वेदी
मथुरा यूपी