साजन की याद ( रुचिरा द्वितीय छंद)
रुचिरा द्वितीय छंद अर्ध सम मात्रिक
६० मात्राएं
१६/१४ के चार चरण अंतिम दो गुरू ।
साजन की याद
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महिनों बाद आज सावन में,
साजन ने भेजी पाती ।
पढ़ पढ़ आंसू बहा रही हूॅं,
रातों नींद नहीं आती।
जाने कैसे रुके अभी तक,
कबका था उनका आना।
आए नहीं और आने का,
बुना नहीं ताना बाना।
शायद किसी नई मैना ने,
फैलाकर मोहक पाॅंखें ।
साजन को भरमाया होगा,
मिला मिला चंचल आंखें।
पर ऐसा आरोप लगाना,
बिना प्रमाण रहे कच्चा ।
जबकि मेरा साजन तो है,
सभी तरह सीधा सच्चा ।
हे भगवन हे मुरली वाले,
नंद यशोदा के लाला।
कुछ भी हो पर सजना के सॅंग,
ये ना हो गड़बड़ झाला।
जिसके नाम चूड़ियां खनकें,
दोनों हाथों में मेरे।
माथे पर सिन्दूर भरा है,
जिसके साथ लिए फेरे।
उसको प्रभू किसी कीमत पर,
नहीं चाहतीं हूॅं खोना।
वह छाती पर मूंग दलेगी ,
जीवन भर होगा रोना।
गुरू सक्सेना
12/6/24