सागर ही क्यों
सागर में आख़िर ऐसा क्या जंतर मंतर होता है
सागर ही क्यों इन बहते दरियाओं का घर होता है
हद से बाहर जाने वाले दरिया जैसे बहते हैं
अपनी हद में रहने वाला सिर्फ़ समन्दर होता है
कहने को तो इश्क़ मुहब्बत दोनों का है मतलब एक
फिर भी इन दोनों लफ़्ज़ों में थोड़ा अंतर होता है
सबके अपने खेल खिलौने होते हैं इस दुनिया में
सबके खेल खिलौनों में इक मस्त कलंदर होता है
बरसों बाद निकलती है इनसे कोई शय चमकीली
वर्ना हीरों की खानों में कंकर पत्थर होता है
… शिवकुमार बिलगरामी