सागर गमगीन चुप हैं हवाएँ
सागर गमगीन चुप हैं हवाएँ
परिंदे उदास
फूल परेशान हैं
तितलियां निराश ।
ये मौसम कब बदलेगा !
पर मन कहता है बदलेगा ज़रूर ।
नीरव हवाएं
निस्तब्ध सब कुछ
सांसो में घुटन
परिंदे उदास
कलरव से कटे
शांत क्लांत
गायब है फूलों की नमी
तितलियों को क्या हुआ
आठवां आश्चर्य
आदमी मौन
रूठे स्वप्न ीन
चरम पर स्वार्थ,
शोकग्रस्त पार्थ
हतप्रभ केशव,
रेत पर कुरुक्षेत्र
आसूं के अक्षर बोने पर भी प्रतिबन्ध
मौसम बदल रहा है
बदलेगा तो जरूर
प्रकृति परिवर्तन शील जो है ।
किस्मत तो सबकी बदलती है
बदले चाहे जैसे
अपनी अपनी नियति है।