सागर का सफरनामा
…लेख…
सागर का सफरनामा
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“सरफरोशी मेरे, सर से नहीं जाती।
चापलूसी की अदा ,हमसे नहीं आती।।
मैं अपने जमीर को, मरने दूं भी तो कैसे ।
मेरे खून से मेरी, जवानी नहीं जाती।।”
उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर बुलंदशहर की सरजमीं पर गांव भटौना है जो कुरली-भटौना के नाम से प्रसिद्ध है वहीं 5 जून 1975 को मैंने एक मध्यम परिवार में जन्म लिया,बचपन में इतना तन्दरूस्त था कि कई दिनों तक मेरी मां ने मुझे दूध भी नहीं पिलाया था कहती थी ….”ये तो कोई भूत है ” जब तक दूसरी महिला ने अपने बच्चे को नहीं दिखाया जो मेरी ही तरहा मोटा ताजा था तब तक मुझे दूध नहीं पिलाया गया। हम चार भाई और दो बहन थे सबसे छोटा मैं ही हूं।
बचपन से ही मुझे फिल्मों की कहानी लुभाती इसलिए मैं बहुत सारे एक्ट्रेस की मिमिक्री भी करता था। मैंने अपनी परछाई से ही डांस सीखा और उस समय मैं अपने गांव का पहला माईकल जैक्सन था शादी -विवाह में डांस करना हो या स्टेज पर मेरा जलवा था ,किशोर कुमार की आवाज में गाना -गाना मुझे बहुत अच्छा लगता था क्योंकि बहुत हद तक मेरी आवाज़ उनसे मेल करती थी । कालेज के समय मेरी पहचान शायरी और गायकी के अलावा अभिनय के क्षेत्र में भी थी, पढ़ाई में मैं कभी ज्यादा होशियार नहीं रहा उसका एक बड़ा कारण था अक्सर मेरा बीमार रहना और मम्मी का लाड़ला होना। मम्मी अक्सर अपने पास लिटाकर गीत गंवाती थी अभी भी ये हरक़त हम कर लेते हैं शायद वहीं से गीत लिखने की शुरुआत पड़ी हो सबसे पहला गीत मैंने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ.भीम राव अंबेडकर जी पर लिखा था, तब मैं कक्षा आठ में पढ़ता था ये गीत एक पैरोडी था।
कहने को पापा जी सरकारी मुलाजिम थे मगर कई-कई महीने तनख्वाह नहीं मिलने के कारण बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता था पापाजी अपने जीवन भर सिद्धांतवादी और ईमानदार रहें मेरी शैतानी और सुंदरता के कारण जो भी रिश्ते दार आता लाड़ में कुछ ना कुछ रुपए पैसे देकर जाता मैंने इन रूपयों से किराना का सामान रख लिया और धीरे-धीरे उस सामान को एक दुकान का रुप दे दिया गया और कुछ समस्याएं कम होने लगी। गरीबी हमारे पास अपने अच्छे खासे दिन बिताकर गई थी । घर में चार बार ऐसी भी चोरी की गई थी जब परिवार के पास केवल पहने हुए कपड़े ही रह गये थे।
बचपन से ही मैं भगत सिंह की सोच वाला रहा डरना और चापलूसी करना , झूठ बोलना मेरा कभी शौक नहीं रहा इन्हीं कारणों के कारण आज भी कुछ लोग मुझसे दूरी बनाए रखते है। एक बार मैं करीब आठ साल की उम्र में मम्मी जी के साथ घास लेने गया तो एक जाट ने मुझे पेशाब करने से रूकने को कहा ऐसा नहीं करने पर वो मेरे पीछे लाठी लेकर आने लगा तो मैंने भी मम्मी के हाथ से दरांती लेकर कहा…..”आ तेरा पेट फाड़ दूंगा” ।
एक बार मैं मूंग की फली टूटवाने के लिए चला गया तो जैसे ही किसान के घर मैं चारपाई बिछाकर बैठा तो जो साथ में कई औरतें और लड़कियां एक साथ थी बोली ……”खड़ा हो जा, जाट आ गया तो पिटेगा”। हमारा क्षेत्र जाट बहुबल क्षेत्र है ,मैंने कहा……”आज जो किसी ने कुछ भी कह दिया तो देखता हूं हमारे यहां कौन हमारी खाट पर बैठता है।” मेरी ये बात उस किसान ने सुनली और हंसकर बोला …..”चाय पानी लेकर आऊं चौधरी साहब”। मगर एक दिन जैसे ही एक किसान के यहां एक शादी में गए तो वहां का नजारा देख मुझे बहुत गुस्सा आया तब मैं कक्षा दसवीं में पढ़ता था वहां ऊंची-नीची जगह पर मोटा -मोटा गोबर की लिपाई पर यूं बैठाकर पत्तल सामने रखदी जबकि दूसरी और फर्स बिछे हुए थे मैंने खाना तो खा लिया मगर पत्तल नहीं उठाया तो हमारे साथ हमारा सरपंच भी था कहने लगा…..”बेटा पत्तल उठाले सभी उठा रहे हैं।”
मैंने कहा…..”ताऊ जी जब ये लोग हमारे यहां खानें आते हैं तो हम तो ऐसा नहीं करने देते ऊपर से हम कीचड़ सी मैं बैठा दिए मैं तो नहीं उठाऊंगा पत्तल.!” वो पत्तल सरपंच ने ही उठाए और पापाजी से शिकायत करदी तो पापा जी बोले……”चाचा तीन लड़कों की बात और है ये सबसे अलग दिमाग का है पर ग़लत नहीं है।”
“चमार हूं ,किसी का चमचा तो नहीं हूं।
गौर से देखले,किसी से कम तो नहीं हूं।।”
एक बार हम सड़क पर पड़े निर्माण के लिए आए बड़े-बड़े पाइपों में अपने साथियों के साथ आखीरी रास्ता फिल्म की शूटिंग कर रहे थे उस दिन हम स्कूल नहीं गये थे सातवीं में पढ़ते थे तभी चार- पांच लड़कों ने दखल अंदाजी की तो हम बीच में आ गए क्योंकि फिल्मी जिंदगी का भूत हमेशा हमारे सर पर सवार रहता था जब भी हम जिस गली -मोहल्ले से गुजरते घर के अंदर बैठे हुए लोगों को भी पता चल जाता कि हम आ रहें हैं ,क्योंकि बिना गाना गाए हम गलियों से गुजर जाएं ऐसा कैसे हो सकता था। बस वो साथी तो भाग गए रह गये हम और उन्होंने निकाल ली कंपास अपने आप को घीरा देख हमने एक के गले में पड़े मफ़लर को खींच वहां से भाग निकले एक में अमिताभ स्टाईल में लात भी जमा दी थी तभी से कक्षा बारहवीं तक लगातार दुश्मनी ऐसे चलती रही जैसे शोले फिल्म में गब्बर सिंह और ठाकुर की चलती थी और कई बार अच्छा-खासा टकराव भी हुआ। एक बार मैंने एक हफ्ते के लिए स्कूल छोड़ दिया और उन्हें मुख्य रास्ता छोड़कर दूसरे रास्ते से जाने के लिए मजबूर कर दिया।
कक्षा बारहवीं की ही बात है हम दस- बारह लड़के आगे वाली सीट पर बैठ गए तो बाइस प्रिंसीपल जो गणित का शिक्षक था आते ही कहने लगा…….”ऐ ये तम हरिजन न हो जो पीछे न बैठें हो।” उन्होंने ये वाक्य दो बार दोहराया तो मैं बोल उठा ……”क्यूं सर जी हरिजन ही बैठते हैं पीछे ”। इस क्लास में शिक्षक का भी लड़का बैठा था और मुझे मेरे साथी पेंट और शर्ट खींचकर बैठने के लिए कह रहे थे,इस बात पर पीछे से एक लड़के ने ये भी कहा था कि …….”ओए रॾढ चुप बैठ जा।” इस बात की खबर फिजिक्स के शिक्षक महोदय जी को लगी जिनका नाम तुफैल अहमद था संभवतः ये बात गणित के ही टीचर ने बताई थी क्योंकि वो अक्सर खाली समय में उन्हीं के लैब में जाकर बैठते थे, मुझे उन्होंने बुलाया और कहा ……” देखो बेटा आपका आखीरी साल है पढ़ो और आगे निकल जाओ ये लोग जमींदार भी है और बदमाश भी आपके पास केवल पढ़ाई है।” उसके बाद हम उनसे नहीं उलझे हां एक वर्ष पहले दौड़ प्रतियोगिता को लेकर वो बचपन के दुश्मन जो साथ ही पढ़ते थे बोले ……”चमटटे मां का दूध पिया है तो दौड़ में हिस्सा लेकर दिखाना वहीं ना मार दे तो अपने बाप से पैदा नहीं।” बस चैलेंज तो किसी का छोड़ा ही नहीं मुझे कुस्ती और कबड्डी खेलने का शौक था एक बार एक ने हमें बुखार में ही कुश्ती का चैलैंज दे दिया फिर क्या था हमने कपड़े उतार लिए और दे दी पटकी पर यहां चैलेंज तो कबूल कर लिया था मगर जीत नहीं पाए हां उनसे जरूर ये कह दिया था कि……”अब सोचना तुम किसके हो अपने बाप के तो हो नहीं।”!
“बदलकर चेहरे जो,फरेब करतें हैं।
बस हम उन्हीं से, परहेज़ करते हैं।।”
1992 की बात है हमारे गांव में एक दुबला पतला सा एक आदमी आ गया जो एक सप्ताह से लोगों की मीटिंग ले रहा था हम परचून की दुकान के कारण नहीं जा पाते थे तो और लोगों से ही पूछा तो हम अचंभित हो गये एक दिन रविवार के दिन हमने अपने गांव के पुस्तकालय में एक मीटिंग बुलाली तो चर्चा शुरू ……”बेटा कुछ होने वाला है ।” हमने उस व्यक्ति से पूछा कि—- “आपका मकसद क्या है।” उसने बताया कि …….”साठ साल बाद एक चुनाव होता है वोट देने जाना होगा।” मैंने पहले से ही अस्सी.. नब्बे साल के कई बुजुर्ग बुला रखें थे तभी मैंने उनसे पूछा……”दादा आपके सामने एक बार तो ऐसा चुनाव हुआ होगा हमने तो पढ़ा नहीं है।” सभी ने मना कर दिया तब मैंने उससे कहा…..”चलो हम आपके साथ यहां से वोट डालने भेज भी देंगे मगर इसकी क्या गारंटी है कि वहां से ये सभी जिंदा आ जाएंगे रोज एक्सीडेंट, बम ब्लास्ट, किडनैपिंग होती है।” वो चौंक गया उससे धार्मिक, राजनैतिक बहस भी छिड़ गई जिसके लिए मैंने पहले से ही….. हिन्दू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास, रानाडे गांधी और जिन्ना, पूना पैक्ट जैसी किताबों के मुख्य पृष्ठ मोड़कर रखें हुए थे इस तरहां वो हतास हो चला गया उसके पास एक तनी का बैग था जिसपर विदेशी सिक्के छपे हुए थे। कुछ लोगों ने मेरी मम्मी जी को डरा दिया तो मम्मी जी कहने लगी…..”इतने दिनों से उ भाषण दे रहा था कोई नहीं बोला सबकी लड़ाई को अपने सर उठाता फिरता है कुछ करवा दिया उसने तो …?””
मैंने कहा ….” मम्मी बात मान लो यहां से पचास आदमी भी साथ ले जाता और वो मर जाते, तू कम से कम इतना सोच तेरे एक बेटे ने पचास तो बचा दिये।”
“तू क्या मानें किसी की”! मम्मी ने कहा और इसकी शिकायत शाम को पापा जी से कर दी तो पापा जी बोले …..”अपने ताऊ और नाना से कम थोड़े रहेगा ये …..भईया औरों को भी कुछ करने देकर तुझसे ज्यादा बड़े और पढ़ें लिखें और भी है।” …….”पर पापा …..?” “चल खेल अब” पापाजी ने हंसकर कहा।
मेरे ताऊजी जो अपनी ससुराल खुर्जा में ही रहने लगे थे वो नेतागीरी में रहते थे हमारे गांव में अपने समाज के वो पहले चुनाव लडने वाले व्यक्ति थे जिनका साथ समाज ने नहीं दिया ।उनकी ही पहली पत्नी ने गांव में सबसे पहले साड़ी पहनी थी जिसका विरोध वहां की चौधराईन ने किया था मगर हमारी ताई ने हार नहीं मानी । हमने देखा इन्हें हवेली वाले कहते थे यदि उनकी कार में खाली ड्राइवर भी हो तो लोग हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे। ताई जी हापुड़ से थी और हमारे नाना जी उस समय बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुपशहर के पहले व्यक्ति थे जो हाथी पर बैठकर ढोल -नगाड़ों के साथ घुमाएं गये थे और पांच गांव के पंच के सर पर जूता भी बजा दिया था महज़ झूठ बोलने पर ऐसे ही एक बार एक पंडित या बनिया के द्वारा बार- बार बहन मायावती जी को अभद्र भाषा बोलने पर आफिस में ही चमड़े की जूती बजादी थी पापा जी अकेले ही अपने समाज के कर्मचारी थे। पापाजी के कारण ही हमारे गांव में एक “शोषित सुधार समिति”का उदय हुआ जिसके बैनर तले बच्चों को फ्री शिक्षा, शादी के लिए टेंट का सामान, पुस्तकालय का निर्माण किया गया जिसका मैं रंगमंच अधिकारी भी रहा जिसके कारण पहली बार हमारे बड़े भाई को डॉ. अम्बेडकर बनाकर पुरे गांव में घुमाया गया ये बात अलग है बाद में उनकी विचारधारा बदल गई।
“खून के रिश्ते भी साफ नहीं लगते!
आप भी अब, आप नहीं लगते!!
बदल कर रख दिया है, माहौल इतना।।
बाप के गले अब, बेटा नहीं लगते ।।”
जातिवाद का दंश आदमी का पीछा कभी नहीं छोड़ता आदमी साथ रहता भी है,खाता भी है, सोता भी है मगर मानसिकता बहुत कम लोग ही बदल पाते हैं। ऐसे बहुत किस्से है सभी को इतने कम शब्दों में समेटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।जब हम बी.ए.में आएं तो एक कविता प्रतियोगिता होनी थी हमें इतनी अभी समझ नहीं थी क्योंकि अभी तक तो हम केवल बाबा साहेब के गीत और मंचों के लिए नाटक ही लिख रहे थे, तभी हमने एक कविता लिखी और कमेटी के मुख्य व्यक्ति जो हिंदी के प्रोफेसर थे उनके पास गया जिनका नाम डॉ.देवकीनंदन शर्मा था उन्होंने पूछा …..”आपका गुरु कौन हैं ?” हमने कहा ….”कोई नहीं सर!” और उन्होंने मुझे छ: विषय दे दिए मैं डर गया अभी-अभी तो लिखना सीखा और इन्होंने …..?खैर कविता लिख दीं,फिर उनका पहले वाला सवाल तो हमने उन्हीं के पैर छूकर गुरु मान लिया और कालेज की कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर मेरठ अमन सिंह आत्रेय जी की काव्य प्रतियोगिता में सहभागिता निभाने का मौका ही नहीं मिला बल्कि एक सपना भी पूरा हुआ मेरे सामने तीन माइक और दो कैमरे वाले घूम रहे थे और एक दो राष्ट्रीय कवि भी उस प्रोग्राम में शामिल थे यहां मेरा कोई नम्बर तो अव्वल नहीं आया मगर सराहना बहुत मिली और एक वृद्ध महिला ने कहा ……..”एक दिन तुम बहुत आगे जाओगे”! आज जब कभी थोड़ा आगे बढ़ता हूं तो वो दुआ याद आ जाती है, घर मैं सभी विरोधी रहे मेरे लिखने के मम्मी-पापा जी कहते थे….. “लिखने वाले हमेशा परेशान रहते हैं ।”तो मैं उन्हे फिल्म में लिखने वालों को खुशहाल बताकर टाल देता था, मगर अब कई बार ऐसा लगने लगता है क्योंकि आज जो वक्त मैं और मेरा परिवार काट रहा है वो हम ही जानते है किसी से सहायता भी नहीं मांग सकते सगे भाईयों को पापाजी की छोटी सी पेंशन का तो पता है मगर उनकी बड़ी सी बीमारी के विषय में जानकर भी अंजान बने रहे और पापाजी हमें छोड़कर चले गए। छोटी बहन धोखे से घर को ही छीनने पर आमादा हो गई वक्त जब इम्तिहान लेता है तो लेता ही चला जाता है। खैर एक बार और कालेज की प्रतियोगिता जीतकर बाहर जाना था मगर प्राचार्य महोदय ने जातिभेद के चलते मुझे अनुमति नहीं दी और ये कहने लगे…….”तुम्हारी कविता कोई कविता नहीं थी तुकबंदी थी।”…….तब मैंने कहा……”सर आई एम नोट पोईट वट सर जब मेरी कविता -कविता नहीं थी तो मुझे आपके आठ जजों ने प्रथम स्थान से क्यूं नवाजा….? जबकि आप भी वही थे।”उन्होंने जबाव नहीं दिया और मैं चला आया। 1996 में मेरा बड़ा भाई टेटनस रोग के कारण हमें छोड़कर चला गया जिसका मुझे बहुत बड़ा आघात पहुंचा और अगली साल होली के दिन गांव में अचानक जाटों ने हमला कर दिया होली ना खेलने के कारण मैं जंगलों में कुछ दोस्तों के साथ था जब मैं आया तो मुझे देख एक जगह खड़े बहुत सारे आदमी,औरत और बच्चे चौंक गए और उन्होंने मुझे भी रोकने की कोशिश की तभी एक आवाज आई …….”भैया आपके पापा को मारा !”वहां हमारा बीच वाला भाई भी खड़ा था मैं जैसे ही घर के पास आया तो देखा सड़क सुनसान पड़ी है दुकान खुली पड़ी है हमारा घर और दुकान आमने-सामने अलग-अलग दो मैन रास्तों पर थी। हमें धर्मेंद्र वाला गुस्सा आ गया ये देख हमें हमारे भाई राजू की कसम दी गई और मम्मी कहने लगी…..” तू अकेला कितनों को मार देगा वो सभी को मार जाएंगे गांव उन्हीं का है।”
“तो कोई हमारे बाप को पिटदे और हम देखते रहें …. क्या फायदा हमारे होने ना होने का…?” मैं गुस्से से भरपूर था
“किसने कहा तुझसे तेरे पापा पर हाथ छोड़ा ..? गोली मार रहा था, तेरे पापा ने उसका गलेबान पकड़ लिया था ….. फिर उसने गलती मानी वो तो ………उसे मारने आए थे !” मम्मी जी ने एक नाम बताते हुए कहा।
शाम को तिराहे पर हमने पूरी बस्ती को ललकारते हुए कहा कि…….”बुजदिलों ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से तो एक दिन लड़के मरो नहीं तो कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन बेटियों की इज्ज़त लूटेगी और तुम देखते रहोगे”….. ये बात जाट भी सुनते जा रहे थे और लोगों में दहशत का माहौल बन गया जब हमने पैरबी की तो पिटने वाले सभी पीछे हट गए और पापाजी ने ये कहकर गांव छोड दिया कि..…..”यदि हमने गांव नहीं छोड़ा तो ये लड़का भी हम खो बैठेंगे और फिर हम बंजारों की तरहा गांव छोड़ आए जाना कहां है कुछ पता नहीं था हमारे साथ 20-25 परिवारों ने गांव छोड़ दिया।
“सच बोलने की, कसम खाने से।
दुश्मनी हो गई, जमाने से।।
मैं अपनी मां का, सबक भूलू कैसे।
लगेगा पाप ,सच छुपाने से।।”
हापुड़ में आकर बीमार होने के कारण पढ़ाई छूट गई एम.ए. अर्थशास्त्र से ,हमारी शादी से पहले ही हमारे भाई अलग- अलग हो गए थे । हमने आई मित्रा ,प्राकृतिक चिकित्सा का कोर्स किया और अब फिजियो थेरेपी की पढ़ाई जारी है। शिक्षा का क्षेत्र बाधाओं से ही भरा रहा। हापुड़ आकर कई आंदोलनों का हिस्सा बना और एक जिद्दी मिशनरी में गिनती हो गई, दो अप्रैल के कांड में एक महीना से ज्यादा घर से बाहर रहा सच और सियासत के खिलाफ लिखने के कारण कितनी ही मारने की धमकियां मिलती रहती है, जिसके कारण कई बार घर में डर और तनाव का माहौल भी पैदा हो जाता है।
“मैं अपनी मौत को, मुट्ठी में बंद रखता हूं।
लोग कहते हैं मैं, अपना अंदाज अलग रखता हूं।।”
कलाओं का मेरे अंदर जैसे बड़ा भण्डार समाया हुआ है अभिनय करना , डांस करना,गायन करना, लिखना आदि मगर गरीबी और हालातों ने कभी पीछा नहीं छोड़ा आज तक जिस भी मुकाम पर हूं मुझे किसी ने सहयोग नहीं किया हां गिराने की ,पीछे धकेलने की कोशिश बहुत लोगों ने की है जिनमें वो ज्यादा शामिल रहे जिन्हें हमने विश्वास कर अपना बनाया या यूं भी कह सकते हैं कि इतने हमने बादाम नहीं खाएं जितने धोखे खाएं है। एक बार एक कामेडी फिल्म की कहानी और टाइटिल सांग के साथ उसमें अभिनय भी किया फिल्म पूरी तरह से तैयार भी हो गई जिसे हीरो (डायरेक्टर)और हीरोइन की अय्याशी की बलि चढ़ गई, बाद में भी कई फिल्मों में काम किया मगर आ नहीं सकीं, हां मंच के अभिनय के हम बड़े राइटर, एक्टर, डायरेक्टर और मंच संचालन रहे ।
“उसने गिराने की मुझे, कोशिश हजार की ।
मां की दुआओं ने, मुझे सूरज बना दिया।।”
जाति एक ऐसा दाग़ होता है जो ना अमीर बनने से छूटता है ना अधिकारी और सी.एम.बनने पर इसका उदाहरण बहन मायावती जी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसे नहीं बच पाए तो हमारी तो बिसात ही क्या । शहर की कई साहित्य संस्थाओं से जुड़ने के बाद भी कभी उन्होंने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया बल्कि एक दिन तो जिस कवि के घर काव्यगोष्ठी थी उसने ……ढोल गंवार शूद्र पशु नारी जैसे वाक्यों से काव्यपाठ प्रारंभ किया जिसपर बहस छिड़ गई यहां प्रजापति, गडरिया और जाटव समाज के भी कवि थे मगर किसी ने मेरा सहयोग नहीं किया और मैंने वो संस्था छोड़ दी और सोशल मीडिया पर मनुवादी सोच की पोल खोल दी। मम्मी जी और पापाजी की बीमारीयों के साथ स्वयं भी शारीरिक व्याधियों से घीरे रहने के कारण बहुत से अच्छे मौके हाथ से निकल गये आज भी पांच-छः किताबो का मैटिरियल तैयार अलमारीयों की शोभा बढाए हुए है। 2021 में पांच महीने बैड पर रहा और भी कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा।मगर हार मानकर बैठे जाना मेरी नीयती में नहीं है ।आज साहित्य के क्षेत्र में मैं गुमनाम कलमकार नहीं हूं ये मेरे लिए गौरव की बात है अमेरिका, चीन, नेपाल जैसे देशों की पत्र-पत्रिकाओं में लेखन जारी है अमेरिका की पत्रिका ने तो मुझे कवर पेज पर भी छापा ,कई पत्रिकाओं के संपादक मंडल में शामिल रहा हूं और हूं भी ,हम दलित, वंचित जनता, बयान, दलित दस्तक, हाशिए की आवाज़,सरस सलिल, कुसुम परख, सरिता, सुदर्शन,अमर उजाला, मूलनिवासी नायक ,अभिनव भारत, विश्व परिक्रमाऔर बौद्धिस्तव मिशन जैसी बड़ी पत्रिकाओं के साथ सैकड़ों पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन कार्य चल रहा है। सोशल मीडिया की कई छोटी-बडी साइटों पर साहित्य लेखन जारी है और अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी देश और जनता की आवाज उठाने का प्रयास करता रहता हूं।
“हादसों की सफ़र में,कमी तो नहीं है।
देखना मेरी आंखों में,नमी तो नहीं है।।”
डॉ. अंबेडकर फैलोशिप सम्मान के साथ -साथ जयपुर की सर जमीं पर दो बार अंतरराष्ट्रीय मैत्री सम्मेलन में इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से नवाजा गया वहीं ग्वालियर की एक संस्था ने ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित किया , इसके अलावा मानव मित्र सम्मान , काव्य सौंदर्य सम्मान, कवि त्रिलोचन शास्त्री सम्मान, भगत सिंह सम्मान, युवा शक्ति सम्मान ,श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, योग गौरव सम्मान, कोरोना योद्धा सम्मान ,नचिकेता बाल साहित्य सम्मान, काव्य श्री सम्मान ,भाषा भारती सम्मान, मातृभाषा सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मान ,श्रेष्ठ कला रत्न सम्मान, राजभाषा सम्मान ये यात्रा अभी निरंतर जारी है लाकडाउन के समय बेड रेस्ट पर ही जहां सैकड़ों गीत और ग़ज़लों का निर्माण हुआ वहीं 40-50 सम्मान अपने नाम कर लिए। सम्मानों की इस श्रृंखला में मिशन सुरक्षा परिषद के कलमकार संघ का मुझे प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लॉर्ड बुद्धा सेवा समिति का जिला कोऑर्डिनेटर, हिंदी साहित्य भारतीय का मीडिया प्रभारी ऐसी बहुत सारी संस्थाओं से भी जुड़ाव रहा है।समाज हित में बिजली की समस्या के साथ- साथ पानी और सड़क का भी निर्माण कार्य कराया जो लम्बे समय से अवरूद्ध पड़ा था और हमें ग्राम प्रधान का चैलेंज भी मिला हुआ था। राजनीति के क्षेत्र में गांव मुरादपुर की नई बसापत का मैं पहला व्यक्ति रहा जिसने चुनाव में खड़े रहने की महज़ हिम्मत ही नहीं की बल्कि दो चुनाव भी जीते ….. वार्ड मैमबर और क्षेत्र पंचायत सदस्य का मेरे ताऊजी और मेरी मम्मी जी भी कभी पहले चुनाव में खड़े हुए थे और दोनों ही हार गये थे। मेरा जीवन बचपन से ही बहुत संघर्ष मय रहा है जो अभी भी चल रहा है। मैं इस डिप्रेस्ड एक्सप्रेस पत्रिका के माध्यम से यहां ये जरूर कहना चाहूंगा कि……..”मिशन हमारे खून में बहता है ……बहुजन समाज केवल सोशल मीडिया पर और बातों में ही मिशनरी है जमीनी धरातल पर बहुजन समाज अपने ही भाई के साथ खिलवाड़ कर रहा है ,उससे ईष्या कर रहा है और उसे गिराने के तरहा-तरहा की योजनाओं का निर्माण कर रहा है जो घातक ही नहीं बल्कि बहुत घातक है । करोड़ों बहुजन समाज के लोगों को कोट पेंट पहनाने वाले और इन्हें बादशाह बनाने वाले बाबा साहेब आंबेडकर जी का संविधान आज समाप्त होने की कगार पर है और हम खामोश बैठे हैं जबकि सच ये है कि……”संविधान जिंदा है तो देश जिंदा है समस्त S.C.,S.T.,O.B.C.और मानियोरिटि ज़िंदा रहेगी। हमें एक दूसरे की टांग नहीं हाथ पकड़ कर खींचना है समाज की प्रतिभाओं की समस्याओं को मिलकर समाप्त करना है ताकि कोई किसी तरह के अभाव में हताश होकर गुमनामी में ना खो जाएं। आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा कि………
“बचना और बचाना है तो,बचाओ संविधान।
वर्ना पीढ़ियां बन जायेगी,जलता हुआ शमशान।।
गर जीना है आजादी से,तो स्वाभिमान जगा लेना।
कुर्बानी देकर भी बचता है,तो संविधान बचा लेना।।”
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बेखौफ शायर/गीतकार/ लेखक/ चिंतक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
गांव-मुरादपुर , सागर कालोनी, गढ़ रोड-नई मंडी, जिला-हापुड, उत्तर प्रदेश
पिन….245101
9897907490,….9149087291