साक्षात्कार- सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय- लेखक, सन्देश (काव्य संग्रह)
सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय जी की पुस्तक “सन्देश (काव्य संग्रह)“, हाल ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित हुई है| यह पुस्तक विश्व भर के ई-स्टोर्स पर उपलब्ध है| आप उसे यहाँ दिए गए लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं- Click here
इसी पुस्तक के सन्दर्भ में टीम साहित्यपीडिया के साथ उनका साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत है|
1) आपका परिचय?
सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय (मंटू उपाध्याय तिसरी गिरिडीह झारखंड)
ग्राम – तिसरी, पोस्ट- तिसरी,
थाना- तिसरी, जिला- गिरिडीह,
राज्य- झारखंड
पिन कोड- 815317
2)आपको लेखन की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? आप कब से लेखन कार्य में संलग्न हैं?
जब मैं कक्षा आठवीं में पढ़ता था , तब मुझे पहली बार ये एहसास हुआ कि मुझे किसी से प्यार हो गया है, पर मैं ये व्यक्त नहीं कर सकता था और उन्हीं एहसासों को धीरे-धीरे लिखते-लिखते एक कवि और लेखक बन गया।
3) आप अपने लेखन की विधा के बारे में कुछ बतायें?
पहले पहल मैंने प्रेम पर लिखा, तब मुझे लेखन विधा की कोई खास जानकारी नहीं थी । बाद में मुझे जब इसकी जानकारी हुई, एक दिन जब मैंने प्रेम में धोखा खाया या खाने बाद कहिये जाकर विरह, छायावाद और देशभक्ति के ऊपर लिखना प्रारंभ किया।
4) आपको कैसा साहित्य पढ़ने का शौक है? कौन से लेखक और किताबें आपको विशेष पसंद हैं?
मुझे संघर्षों से भरे ओजपूर्ण साहित्य पढ़ने का शौक है। मुझे खासकर रविन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सुर्यकांत त्रिपाठी निराला और प्रेमचंद जैसे महान लेखकों के द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने का शौक है।
5) आपकी कितनी किताबें आ चुकी है?
मेरे द्वारा रचित पहली काव्य संग्रह " संदेश " का प्रकाशन हाल (2018 फरवरी) ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से करवाया है।
6) प्रस्तुत पुस्तक के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
प्रस्तुत काव्य संग्रह "संदेश " मेरे जीवन भर की पहली पूंजी की तरह है, जिसे मैंने काव्य संग्रह का रूप देकर आपके समक्ष रखने का काम किया है।
7) ये कहा जा रहा है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। इस बारे में आपका क्या कहना है?
ऐसा नहीं है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है बल्कि लेखक और उनके द्वारा रचित साहित्य का आम इंसानों की विवशता और उसके परिप्रेक्ष्य से ही लेना देना होता है जबकि आजकल का दौर प्रतिस्पर्धाओ का है, जिसमें लोगों को उनसे संबंधित किताबों को ज्यादा पढ़ना पड़ता है यही कारण है कि लोग साहित्य को विद्यार्थी जीवन के बाद ही पढ़ने का मौका निकाल पाते है। और हाँ यह भी तो है कि सभी लेखकों को किताबों का सिलेबस बनने का मौका भी तो नहीं मिल पाता है न।
8) साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आप कैसी मानते है?
साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका को कभी नकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि इनके आने मात्र से ही समाज में नई-नई क्रांतियो का संचार होता रहा है और होता रहेगा।
9) हिंदी भाषा मे अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को आप उचित मानते हैं या अनुचित?
हिन्दी भाषा में अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग की जहाँ तक बात है ;वो कोई नई बात तो है नहीं, हिन्दी और हिन्दूस्तान दोनों वासुदेव कुटूम्बकम पे विश्वास रखते है। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्दों के शामिल होने से हिन्दी कमजोर नहीं; बल्कि सशक्त होकर और निखरती ही तो चली जा रही है। और इस भाषा को विश्व स्तर पर अपनी एक अलग पहचान भी तो बनी है।
10) आजकल नए लेखकों की संख्या में अतिशय बढ़ोतरी हो रही है। आप उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
ये बात सही है कि आजकल नए लेखकों की संख्या बढ़ रही है । पर ये भी समझना होगा कि उनकी लेखनी का स्तर क्या है? लोग उन्हीं लेखकों को आज पढ़ना पसंद करनें लगे है जिनकी लेखनी में अश्ललीता होती है, इससे समाज का चारित्रिक पतन होता है ।ये साहित्य के क्षेत्र में एक निंदनीय विषय है।
11) अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
हम अपने पाठकों से यह कहना चाहते है कि जिस तरह का भोजन इंसान करता है उसी तरह का मन भी होता है। ठीक उसी तरह साहित्य का संबंध हमारे साथ भी है ,हम जिस तरह के साहित्य को हम पढेंगे उसी तरह के समाज का निर्माण करेंगे या करने में मदद करेंगे। हमनें अपने साहित्य में भी सत्य सद्व्यवहार और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को शामिल कर उन भावनाओं को ओजपूर्ण बनाकर; उसे एक नये रूप में आप सबों के समक्ष रखनें की पूरी- पूरी कोशिश की है।
12) साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा? आप अन्य लेखकों से इस संदर्भ में कहना चाहेंगे?
साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से हमने अपने पुस्तक का प्रकाशन करवाया ,यह अनुभव वाकई हमारे लिए एक अद्भुत और भावपूर्ण क्षण की तरह है। जिसे मैं ताउम्र नहीं भूल सकता। इस प्रकाशन के माध्यम से जो सहयोग हमें मिला है, वो अतुलनीय है। और अन्य लेखकों के विषयों में, मैं बहुत ज्यादा तो नहीं बल्कि यही कह पाऊँगा; कि वो भी बेहतरीन व्यक्तित्व के धनी है।