साक्षात्कार- राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”- लेखक, एहसास और ज़िन्दगी- काव्य संग्रह
हरियाणा के शिक्षा विभाग में हिन्दी प्रवक्ता पद पर कार्यरत राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम” जी की पुस्तक “एहसास और ज़िन्दगी- काव्य संग्रह“, हाल ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित हुई है|
राधेश्याम जी ने इस पुस्तक में जीवन के अनुभवों, रिश्तों, शुद्ध प्रेम, प्रकृति, सामाजिक विकृतियां, प्रेरणा, स्वदेश-प्रेम, शिक्षा आदि से संबंधित कविताओं का संकलन किया है। इसकी हर एक रचना बेहद खूबसूरत है और सुन्दर सन्देश लिए हुए है|
राधेयश्याम जी की पुस्तक “एहसास और ज़िन्दगी- काव्य संग्रह” विश्व भर के ई-स्टोर्स पर उपलब्ध है| आप उसे इस लिंक द्वारा प्राप्त कर सकते हैं- Click here
इसी के सन्दर्भ में टीम साहित्यपीडिया के साथ उनका साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत है|
1- आपका परिचय?
मेरा नाम राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम” है। मेरे पिताजी का नाम श्री रामकुमार बंगालिया और माता जी का श्री मती किताबो देवी है। मैं हरियाणा शिक्षा विभाग में हिन्दी प्रवक्ता पद पर कार्यरत हूँ। मैंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हिंदी विषय मेंं स्नातकोत्तर एवं इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से बी.लिब.की उपाधियाँ ग्रहण की हैं। मेरा जन्म पावन भूमि जमालपुर,तहसील बवानी खेड़ा, ज़िला भिवानी, राज्य हरियाणा में हुआ।
2- आपको लेखन की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? आप कब से लेखन कार्य में संलग्न हैं?
जवाहर नवोदय विद्यालय देवराला (भिवानी) में मैं आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। तब एकदिन हिंदी पाठ्य-पुस्तक में किसी कवि की कविता पढ़ रहा था, कविता पढ़ने के बाद नीचे कवि का नाम देखकर मन में एक चेतना जागृत हुई कि ऐसी कविता तो मैं भी लिख सकता हूँ और मेरा भी नाम क़िताब में छप सकता है। पहला प्रयास किया और कविता लिखकर हिंदी के प्राध्यापक श्री प्रताप आर्य को दिखाई तो पढ़कर हतप्रभ रह गए, मुझपर यकीन ही नहीं हुआ और एक विषय देकर कहा, इसपर कविता लिखकर दिखाओ। मैंने “हिंदी कहे पुकार के” दिए गए विषय पर कविता लिखी और मंच पर सुनाई तो बहुत प्रशंसा हुई मेरी और प्राध्यापक महोदय के मुख से अकस्मात ही निकल पड़ा, "बेटा!एकदिन तू महाकवि बनेगा।" यहीं से कविता सृजन का कार्य आरम्भ हो गया।
3- आप अपने लेखन की विधा के बारे में कुछ बतायें?
मैं मुक्तक और छंदबद्ध दोनों तरह की कविताएँ लिखता हूँ। कविता के साथ-साथ ग़ज़ल,गीत,कहानी लेखन में भी मेरी रुचि है। मैं अकेला होकर भी अकेला नहीं होता जब मेरे साथ होती है मेरी कविता। कविता मेरी प्रेरणा है,जीवन-शक्ति है। संघर्ष के समय में सकारात्मक विचार, कुछ लीक से हटकर कर दिखाने की उत्कंठा मन में प्रवाहित करने वाली कविता ही है।
4- आपको कैसा साहित्य पढ़ने का शौक है? कौन से लेखक और किताबें आपको विशेष पसंद हैं?
मुझे पद्यमयी साहित्य पढ़ने का शौक है; किंतु गद्य से भी परहेज़ नहीं है। साहित्य में सुप्तशक्तियों को जागृत करने की असीम उर्जा समाहित है। साहित्य जीवन को संस्कार देता है,निखार देता है। मुझे कबीर, तुलसी, सूरदास, जयशंकर प्रसाद, निराला, पंत, प्रेमचंद आदि साहित्यकार एवं इनके द्वारा सृजित कबीर के दोहे, रामचरित मानस, कामायनी, कुकुरमुत्ता (लम्बी कविता), पल्लव, गोदान विशेष रूप से पसंद हैं।
5- आपकी कितनी किताबें आ चुकी है?
मेरा यह दूसरा काव्य-संग्रह है। प्रथम काव्य-संग्रह “आईना” नाम से प्रकाशित हुआ था, जिससे मुझे बहुत मान-सम्मान और प्रशंसा मिली। इसके अतिरिक्त जेएमडी पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित साँझा काव्य-संग्रह “काव्य-अमृत” और शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है “भारत के युवा कवि और कवयित्रियाँ”।
6- प्रस्तुत संग्रह के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
प्रस्तुत काव्य-संग्रह “अहसास और ज़िंदगी” मेरा दूसरा काव्य-संग्रह है। इसमें मैंने जीवन के अनुभवों, रिश्तों, शुद्ध प्रेम, प्रकृति, सामाजिक विकृतियां, प्रेरणा, स्वदेश-प्रेम,शिक्षा आदि से संबंधित कविताओं का संकलन किया है। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि इसे पढ़ने के पश्चात सहृदय प्राणी असीम आनंद का अनुभव करेगा और अपने मन में अतिरिक्त उर्जा संचित कर मंज़िल की दीवानगी हृदय में भर सफलता रूपी मोती जीवन-माला में जड़ेगा।
7- ये कहा जा रहा है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। इस बारे में आपका क्या कहना है?
साहित्य कभी निराधार नहीं होता। इसमें स्तर गिरने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ये तो हर मनुष्य का अपना नजरिया है कोई चाँद को देखे कोई दाग़ को।समाज में जो घटित हो रहा है उसे देखकर एक सच्चा साहित्यकार आँखें बंद नहीं कर सकता। अन्याय देखकर जो विरोध नहीं करता वह सबसे ख़तरनाक है। एक साहित्यकार का फ़र्ज़ है कि वो अन्याय का विरोध करे और एक शुद्ध आलोचना पक्ष-विपक्ष को ध्यान में न रखकर स्वच्छंद भाव से करे। जो साहित्य लिखा जा रहा वह सही है यदि जाति, धर्म, क्षेत्र, अश्लीलता से परे है।
8- साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आप कैसी मानते है?
मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आज के यथार्थ जीवन में सर्वोपरि है। मीडिया ने संसार को संकुचित कर दिया है। इसके माध्यम से हम अपने विचारों को संसार के किसी भी कोने में आसानी से सम्प्रेषित कर सकते हैं।
9- हिंदी भाषा मे अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को आप उचित मानते हैं या अनुचित?
भावों की अभिव्यक्ति जो सहृदय प्राणियों को आनंद विभोर कर दे, तो श्रेष्ठ है। हिंदी में अन्य भाषाओं के शब्दों का चयन पाठकों और भावों की अभिव्यक्ति सुरुचिपूर्ण करने हेतु करना पड़े तो अनुचित नहीं है।
10- आजकल नए लेखकों की संख्या में अतिशय बढ़ोतरी हो रही है। आप उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
यह तो हर्ष का विषय है कि लेखकों की संख्या बढ़ रही है। सभी को लोकतंत्र में अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है। मन के विचार संकुचित न हों। हो सकता है किसी के विचार किसी की प्रेरणा का आधार बन जाएं। किसको कौनसा विचार प्रभावित कर जाए यह अनुमान लगाना मुश्किल है, इसलिए मन में उर्जित विचार साँझा करने चाहिए। लेखकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हिंदी के विकास कर्म में फलदायक है।
11- अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं पाठकों को संदेश देना चाहूँगा कि अच्छा साहित्य पढ़ें और जीवन में आत्मसात कर सच्चाई के मार्ग पर अग्रसर होते हुए मंज़िल की प्राप्ति कर दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनें।
मनुष्य जीवन अनमोल है, इसे उचित कार्यों में संलग्न कर पवित्र फल हेतु समर्पित करें।पुरुषार्थ सर्वोत्तम है। मेरा काव्य-संग्रह “अहसास और ज़िंदगी” मुझमें उर्जा संचित कर सफलता की ओर अग्रसर कर सकता है तो आपको क्यों नहीं। इसे अवश्य पढ़े और अपने जीवन को सार्थक पहचान दें।
12- साहित्यापीडिया पब्लिशिंग से पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा? आप अन्य लेखकों से इस संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?
साहित्यपीडिया पब्लिशिंग अत्यंत सार्थक एवं सुंदर मंच है, जिसके माध्यम से हमारी छिपी हुई सुप्तशक्तियों को आमजन तक बहुत ही सहज, सरल रीति से पहुँचाने का पावन कार्य तन्मयता, लग्न, सूझबूझ, ईमानदारी एवं कर्मठता से किया जा रहा है। साहित्यापीडिया की सम्पूर्ण टीम को बहुत साधुवाद एवं धन्यवाद। अन्य साहित्यकारों से बस यही आग्रह करूँगा कि आप भी अपनी पवित्र सृजनाओं को साहित्यापीडिया पब्लिशिंग से ही पब्लिश करवाएँ, यह विश्वसनीय एवं अत्यंत सराहनीय है।