साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
आज हम आपको जिस स्वास्थ्य मंत्री से साक्षात्कार करा रहे हैं, इनका स्वास्थ्य पिछले वर्षों में महाजन के सूद की तरह दिन दूना और रात चौगुना बढ़ा है। इनके स्वास्थ्य [ तोंद ] की क्रांतिकारी प्रगति को देखकर हमारी इच्छा हुई कि क्यों न इनके स्वास्थ्य के रहस्य पर अपनी लेखनी की जांच-आयोग बिठाकर, उसकी रिपोर्ट सूखकर छुहारा होती हुई जनता के समक्ष पेश की जाये। तो प्रस्तुत है एक स्वास्थ्य मंत्री से रोमांचक साक्षात्कर-
हम मंत्रीजी के वातानुकूलित कक्ष में जैसे ही प्रविष्ट हुये तो वहां इन्द्र के अखाड़े जैसा माहौल देखकर भौचक्के रह गये और यह भूल गये कि हम उनसे उनके स्वास्थ्य का रहस्य जानने आये हैं। क्षण-भर को हमें अपना ब्रह्मचर्य भी डांवाडोल होता महसूस हुआ। बड़ी मुश्किल से अपने पर काबू किया और कुर्सी खींचकर उनके समक्ष बैठ गये। वे बड़ी मादक मुस्कान से हमारी ओर देखते हुये बोले-‘‘ कहिये पत्रकार जी! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’’
‘‘ जी, हम आपसे कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रश्न पूछने आये हैं?’’
‘‘ अजी क्या पूछना चाहते हैं आप हमारे स्वास्थ्य के बारे में। आजकल विरोधियों ने मिट्टी खराब कर रखी है हमारे स्वास्थ्य की।।’’
मंत्रीजी के इस गोल-गोल उत्तर पर हम भला आसानी से उनका पीछा कैसे छोड़ सकते थे। हमने पुनः एक और प्रश्न दागा-
“सरकार! अपनी इस क्रांतिकारी स्वास्थ्य-वृद्धि के बारे में कुछ तो बताएं जनता को?’’
क्रांतिकारी शब्द पर मंत्रीजी थोड़ा-सा चौंके और फिर संयत होते हुये बोले-‘‘ क्रांतिकारी स्वास्थ्य! अरे भाई नहीं-नहीं, मेरा स्वास्थ्य तो पूरी तरह लोकतांत्रिक है। अगर आप जानना ही चाहते हैं मेरे स्वास्थ्य का रहस्य… तो सुनिये…मगर छापियेगा नहीं।’’
यह कहते-कहते मंत्रीजी के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान फैल गयी, उनकी तोंद में लगातार का उतार-चढ़ाव आने लगा। उन्होंने कसमसाहट के साथ एक ठण्डी आह भरी और मेज पर हमारी ओर झुकते हुये बोले- ‘पिछले पांच सालों से हजारों वादे और आश्वासनों का निशास्ता सुबह नाश्ते में ले रहा हूं। शुरू-शुरू में तो मुझे इसे पचाने में काफी तकलीफ होती थी, लेकिन बाद में हाज़मे की राजनैतिक गोलियों से वह परेशानी भी खत्म हो गयी। अब आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि मेरे स्वास्थ्य का राज़ क्या है?’’
मंत्रीजी के स्वास्थ्य का रहस्य जानने के बाद हमें उनसे जनता के स्वास्थ्य के बारे में जानने की जिज्ञासा भी उत्पन्न हुयी और पूछ ही लिया-‘‘मान्यवर! आजकल जनता का स्वास्थ्य थर्मामीटर के पारे की तरह गिर रहा है, इसका क्या कारण है?’’
यह सुनते ही वे कसमसाकर बोले-‘‘ आपने तो मुंह का जायका ही खराब कर डाला। खैर, जब पूछ ही लिया है आपने तो हम भी बताए ही देते हैं कि जनता को जो कुछ मिलता है, उस पर संतोष नहीं करती, बल्कि उसकी निगाह हमारे खान-पान और चेहरे पर बढ़ती हुयी लालामी पर टिकी रहती हैं। आप तो जानते ही होंगे कि किसी कवि ने कहा है-‘रूखा-सूखा खाय के ठंडा पानी पीव, देख परायी चूपड़ी मत ललचावै जीव’, अगर जनता कवि की इस बात को गांठ बांध ले तो रोना किस बात का? मगर सच जानिये उसे तो दूसरे की थाली में झांकने की आदत-सी हो गयी है। उस पर तुर्रा ये कि सरकार हमें खाने को कुछ नहीं देती। उसे तो इस बात पर संतोष करना चाहिये कि उसे पेट भरने को दो वक़्त की सूखी रोटी तो मिल जाती है। मुझे देखिये, हफ्तों मेवे और फलों पर गुज़ारा करना पड़ता है। कभी-कभी पानी भी नसीब नहीं होता, बल्कि प्यास बुझाने के लिये विदेशी शराबों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि जनता चुंगी के नलों के नीचे यदि अपना बर्तन लगा दे तो बेशक बूंद-बूंद ही सही, सुबह से शाम तक भर तो जाता है। अब आप बताइए! ऐसे सुविधाभोगी लोगों का यदि स्वास्थ्य गिर रहा है तो मैं क्या कर सकता हूं? उनके स्वास्थ्य के लिये तो मैं अपना स्वास्थ्य खराब करने से रहा।’’
जनता के प्रति मंत्रीजी की उदारता देखकर हमने मन ही मन उन्हें सैकड़ों बार नमन किया और गद्गद् होते हुये हम अनायास उनसे बोले-‘‘ नहीं.. नहीं मंत्रीजी आपको जनता के स्वास्थ्य की बिल्कुल चिन्ता नहीं करनी चाहिये। जनता तो आपकी प्रजा है | प्रजा आपकी बराबरी कैसे कर सकती है? वो तो कुछ सिरफिरे हैं जो आपको जनता का सेवक बताते हैं | हमें तो बस यह चिन्ता जरूर है कि जनता का स्वास्थ्य किस गति से गिर रहा है, भविष्य में जब भी चुनाव होंगे तो जनता मतदान केन्द्रों तक आपको वोट डालने कैसे आयेगी?
यह सुनते ही मंत्रीजी रूष्ट होकर बोले-‘‘ अजी कैसे पत्रकार हैं आप! इतना भी नहीं समझते कि जनता कभी अपनी इच्छा से वोट डालने नहीं आती। उसे तो मतदान केन्द्रों तक अदृश्य सरकारी प्रयत्नों से लाना पड़ता है। इसलिये जनता के स्वास्थ्य जैसे छोटे-मोटे पचड़े में हम कभी नहीं पड़ते।’’
मंत्रीजी से साक्षात्कार का समय भी समाप्त होता जा रहा था और हमारे प्रश्नों के सभी मोहरे लगातार पिट चुके थे, फिर भी हमने चलते-चलते अपना अन्तिम मोहरा आगे बढ़ाया-‘‘मंत्रीजी! जनता के स्वास्थ्य के प्रति भविष्य में आपकी कुछ तो योजनाएं होंगी?’’
अंतिम प्रश्न को सुनकर मंत्रीजी के चेहरे पर असंतोष और उकताहट के भाव और भी गहरे हो गये। वे हमें टालने की मुद्रा बनाते हुये बोले-‘‘ अजी योजनाएं तो हर साल बनकर हमारे कार्यालय से निकलती हैं, मगर पता नहीं किन अज्ञात कारणों से रास्ते में भाप बनकर उड़ जाती हैं। हो सकता है इसके पीछे किसी विरोधी दल या विदेशी संस्था का हाथ हो।… अभी और कुछ पूछना बाकी रह गया हो तो जल्दी से पूछ लो। ज्यादा समय तक चर्चा करने से मेरा स्वास्थ्य खराब होना लगता है।’’
‘‘नहीं साहब! अब कुछ नहीं पूछना। सब कुछ जान गये हैं। अब आज्ञा चाहेंगे?’’
हमने विनम्रतापूर्वक मंत्रीजी के स्वागत-कक्ष से प्रस्थान किया। अभी हम बाहर निकल ही रहे थे कि मंत्रीजी के मंद स्फुटित शब्द हमारे कानों में जबरदस्ती उतर गये-‘‘ स्साले पत्रकार कहीं के..।’
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