सांस लीहल हो गइल मुश्किल बड़ी हम का करीं
गजल
लोभ में आन्हर भइल, हर आदमी हम का करीं।
ना दिखाई दे रहल, आपन कमी हम का करीं।
नासमझ के भीड़ भारी, सत्य से सब दूर बा,
जाति मजहब में उलझ के, लड़ मरी हम का करीं।
अर्थ सर्जन में पिसा के, रह गइल सब लोग अब,
सांँस लीहल हो गइल, मुश्किल बड़ी हम का करीं।
भूख दउलत के बड़ी बाउर हवे ना मिट सके,
खत्म ना होखत हवे ई, तिश्नगी हम का करीं।
धर्म के धंधा बना लिहले सभे बा स्वार्थ में,
आदमी सब बनि गइल बाड़न, नबी हम का करीं।
‘सूर्य’ जे बा गैर उनसे, आस ना कवनो हवे,
जे रहल दिल में, बनल बा अजनबी हम का करीं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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