सांसें कम पड़ गई
सांसें कम पड़ गई
ज़िन्दगी रेत सी फिसल गई।
अपनों के सामने अपने यूं ही चले गए।
बस हाथों में हाथ ही रह गए।
बिना कहे हालात सब कुछ कह गए।
चंद सांसों के लिए लोग तरस गए
जिंदगी की आस में वो चले गए।
किसी की भी रूह कांप जाए
ऐसे मंज़र सबने देखे हैं
बहुतों ने बहुत दुःख झेले हैं।
पर कुछ लोगों में इंसानियत बची नहीं
किसी की जान की इन्हें परवाह नहीं।
ऐसे हालातों में भी
सांसों का सौदा लोग कर रहे हैं।
लोगों की जरूरत का यह लोग
खूब सारा फायदा बटोर रहे हैं।
गुज़ारिश है मेरी बस उनसे
खेल तुम अपना यह बंद कर दो
वरना जेल की आदत डाल लो।
वक्त है अब भी सुधर जाओ
और मदद का हाथ बढ़ाओ।
– श्रीयांश गुप्ता