सांध्य धूप
थक गई है धूप-
की पेड़ों के काढ़े पे,
सर टेके पसरी है।
चेहरा पीला,
आंखें नील गगन पर-
कि चन्दा के रथ पर,
चांदनी आ जाये-
समेटे बाहों में,
शांति बरसाए।
बुझी निढाल उनींदी-
कल जाग जाएगी,
सूर्य की पहली किरण-
संग मुस्करायेगी।
समय के बंधन से-
यह बिल्कुल मुक्त है,
न उम्र बढ़ती है-
न बुद्धि होती है,
केवल चंद लम्हे-
सोती है जब होती है ।।