सांता क्लॉज़
सांता क्लॉज़ बहुत जल्दी में था, अपने स्वभाव के अनुरूप उसने सभी को ढेरों खुशियां दे डाली थीं, अब वो निश्चिंत था कि बच्चे और उनके अभिभावक बहुत खुश थे। गुनगुनाते हुए वो मस्ती में चला जा रहा था कि अचानक रास्ते में उसको एक पार्क की बेंच पर करीब ११ वर्ष की एवं ९ वर्ष की दो बच्चियां बैठी दिखीं। वो उन दोनों के पास पहुॅंचा तो वो दोनों चौंक पड़ीं..
“आप कौन हैं?” छोटी वाली ने हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए पूछा।
“मैं..सांता क्लॉज़”..तुम दोनों को सरप्राइज़ देने आया हूॅं” कहकर सांता अपने झोले में हाथ डालने लगा!
“आप कुछ भी दे सकते हैं?” अब डबडबाई ऑंखों से बड़ी वाली बच्ची ने पूछा
“हाॅं बिल्कुल! कहकर सांता थोड़ा असहज हो गया
“तो फिर आप मेरे मम्मी-पापा को आसमान से लेकर आइये ना..उनको भगवान जी ने ऊपर बुला लिया है, कोरोना का इलाज करने के लिए, पर हम दोनों को नहीं बुलाया..और हमारा घर .. जिसमें भूत आ गये हैं, जहाॅं हम लोगों के जाते ही गंदी बदबू आने लगती है और मुॅंह पर कपड़ा बाॅंधें वो भूत हम लोगों को पकड़ने दौड़ते हैं, उन सबको भगा दीजिए ना..साफ-सुथरा मेरा कमरा, दीदी का हारमोनियम..सब गायब हो गया सांता क्लॉज़, प्लीज़ हम दोनों को हमारा पुराना जीवन वापस दिलवा दीजिए ना” कहकर छोटी बच्ची रो पड़ी और “मम्मी आ जाओ, मुझसे भूखा नहीं रहा जाता, भूत कपड़े भी नहीं पहनने देते” कहकर वो चीखने लगी..
सांता के भेष में घूम रही सी.आइ.डी. इंस्पेक्टर ‘रानी’ दंग रह गई! ..उसका हाथ झोले में ही फॅंसा रह गया!
“उफ! मानवता सच में मर चुकी है”.. सोचते-सोचते उसने उन दोनों का हाथ पकड़ा और बोली
“चलो! अभी मेरे साथ चलो, सवेरे-सवेरे तुम्हारे घर चलेंगे, वहाॅं तुम्हें कोई भूत नहीं मिलेगा” अपनी ऑंखों के साथ ही उसने उन दोनों की ऑंखों के ऑंसुओं को पोछा और उन बच्चों की सुरक्षा के बारे में विचार करती हुई, दोनों को साथ लेकर अपने घर की तरफ चल पड़ी।
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
लखनऊ