सांठ– गांठ
सांठ -गांठ के खेल से मिल जाता है,पुस्तकार।बजने लगती है, तालियां मच जाता हा- हा-कार। कुछ यहां की और कुछ वहां की, चोरी कर लाता है। बिना कुछ किए ही विजेता बन जाता है।———-जनता की नजरों में वह महान। औरत की नजरों में , बना बुद्धिमान।—————-रिशतेदार की नजरों में पाया सम्मान। झूठे ने की झूठे की है, पहचान।————-लेकिन तू बच नही पायेगा, नजरों से भगवान की । कितना भी सांठ ,गांठ करलें और कमाले,दौलत जहान की।।एक एक पल का हिसाब रखता हूं। कर्म से कर्म का खिताब रखता हूं। ये झूठी वाही वाही खुशी न दे पायेगी। ईश्वर के द्वारा देर है,अंधेर नहीं हो पायेगी।