” सांझ ढलती है चले आना ” !!
सांझ ढलती है चले आना !!
डूबा डूबा है रवि ,
झुकी सी पलकें कहीं !
हवाएं थम गई हैं ,
नहीं थोड़ी सी नमी !
गगन भी झुक सा गया ,
छा के बादल से चले जाना !!
अक्स उभरे हैं कई ,
यादें न पीछे रहीं !
थकती पतवार लगे ,
नाव भी ठहरी यहीं !
आँखें बैचेन थकी ,
आ के मौसम से ढले जाना !!
मौन पल पल है यहाँ ,
कोइ कलरव है कहाँ !
ठहरा सा पहर लगे ,
लहरें भी थमी यहाँ !
बेकरारी की घड़ी ,
कभी टलती ना टले , आना !!
देर कर दी है बड़ी ,
खुशबुएँ बिखरी , उड़ी !
आस ना टूटे कहीं ,
लगा दो ऐसी झड़ी !
साक्षी हैं धरा गगन ,
कमी खलती है चले आना !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )