‘सांझ के रूप’
चला सूर्य पश्चिम में सोने,
सुखद स्वप्न में खुद को खोने।
सागर में फैली लाल चदरिया,
उतरी उस पर सांझ गुजरिया।
चल पड़ी व्योम पथ तारे बोने,
चला सूर्य पश्चिम में सोने।
कृषक चले हल काँधे धारे,
वनिता तकती घर के द्वारे ।
झुंड पशु के घर को निकले,
घर भीतर से लगते उजले।
आई ओस धरा को भिगोने,
चला सूर्य पश्चिम में सोने।
मंदिर घंट ध्वनि बजने लगी,
थाल आरती सजने लगी।
बाल वृंद अपने घर पहुँचे,
सरोज सरवर में बंद हुए।
चंदा निकला तम को धोने,
चला सूर्य पश्चिम में सोने।
स्वरचित ✍
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार
©®