# सांग – सारंगा परी # अनुक्रमांक-17 # होए बीर कै असूर-देवता, और मनुष देहधारी, बीर नाम पृथ्वी का, जिसपै रचि सृष्टि सारी ।। टेक ।।
# सांग – सारंगा परी # अनुक्रमांक-17 #
जवाब – कवि का नारी-दृष्टिकोण |
होए बीर कै असूर-देवता, और मनुष देहधारी,
बीर नाम पृथ्वी का, जिसपै रचि सृष्टि सारी ।। टेक ।।
बेदवती-बेमाता भोई, शक्ति बीर बताई,
जगजननी और जगतपिता की, एक ताशीर बताई,
ब्रहमजीव कै मोहमाया की, घली जंजीर बताई,
पाछै बण्या शरीर, लिखी पहले तकदीर बताई,
तकदीर बणादे सेठ बादशाह, राजा-रंक-भिखारी ।।
शक्ति से आकाश रच्या, ना हर की लीला जाणी,
खान-पान उद्यान-ब्यान, बयान भविष्यवाणी,
पृथ्वी होई बाद मै, पहले अग्न-पवन और पाणी,
किन्नर-नाग पशु-पक्षी, होए बीर कै सकल प्राणी,
जगत रचाया हर की माया, 13 कास्ब (कश्यप) नारी ।।
अगत-भगत और जगत कहै, वंश की बेल लुगाई,
ब्रहमा-विष्णु-शिवजी का, करै आनंद खेल लुगाई,
11 रूद्र रचे क्रोध से, सबकै गेल लुगाई,
बांधदी मर्याद मनु नै, मर्द की जेल लुगाई,
सती-लक्ष्मी-देबीमाई, डाण-डंकणी-स्यहारी ।।
राजेराम कहै जती-सती का, धर्म बराबर हो सै,
हंस नै ताल, गऊं नै बछड़ा, इसा बांझ नै पुत्र हो सै,
सर्प नै बम्बी, पक्षी नै आल्हणा, इसा गृहस्थी नै घर हो सै,
धनमाया-संतान-स्त्री, माणस की पर हो सै,
बुढ़ा माणस ब्याह करवाले, बण्या फिरै घरबारी।।