**साँवरा है किधर**
जिसे ढूंढती है मेरी नज़र,
वो साँवरा है किधर।।
जिसने भटकाई मेरी डगर,
वो साँवरा है किधर।।
जिसके लिए घर मीरा ने छोड़ा,
लगी लगन ऐसी, बंधन सब तोड़ा,
जिसके रंग में रंगी चुनर,
वो साँवरा है किधर।।
तेरी मुरली की एक बाला दीवानी,
चंचल से नैन जिसके,नाम राधा रानी,
जिसकी प्रीत की ओढ़ी चादर,
वो साँवरा है किधर।।
देख जिसकी सूरत मैं सुध-बुध गंवायी
जिसके लिए सारी दुनिया भुलायी,
बावरी सी भटकूं दर-दर,
वो साँवरा है किधर।।
जिसे ढूँढती है मेरी नज़र,
वो साँवरा है किधर।।
स्वरचित…शिल्पी सिंह
बलिया उ.प्र