साँझ- सवेरे योगी होकर, अलख जगाना पड़ता है ।
साँझ- सवेरे योगी होकर, अलख जगाना पड़ता है ।
तनदाही लपटों को हँसकर, अंग लगाना पड़ता है ।
सहज नहीं मिल जाता मन को,प्रेम-कमल इस दुनिया में-
सीप सरीखी आँखों को नित, झील बनाना पड़ता है ।
अशोक दीप