“सही हूँ मैं”
??”सही हूँ मैं”??
“8मार्च,महिला दिवस,महिला सशक्तिकरण,महिला जागरूकता,महिला आरक्षण,आज की महिला,हर क्षेत्र में आगे बढ़ती महिला………ये वे वजनी शब्द हैं जो महिला सम्मेलनों में प्रबुद्ध वर्ग द्वारा प्रयुक्त होंगे इस माह,पर वास्तव में खोखले शब्द जिनका एक आध अपवादों को छोड़कर कोई अस्तित्व नहीं”
उस अजन्मी को मौत रूपी दूसरी जिन्दगी को सौंपकर शीला बाहर से भले ही निश्चिंत लग रही थी पर उसके अन्तर्मन में अभी भी एक टीस सी थी जो उसे रह रहकर व्यथित कर रही थी,जो सारे बंध तोड़ विधाता की इस सृष्टि को कम्पित करने को मचल रह थी|
आज आठ मार्च था,चारों ओर महिला दिवस का शोर था|
अखबार,पत्रिकाएँ,टीवी चैनल सब महिला दिवसमय हो रहे थे|नगरों, महानगरों,राजधानियों में विशेष तौर पर महिला सम्मेलनों का आयोजन किया गया था|बड़े बड़े आयोजन,बड़े बड़े भाषण,बड़ी बड़ी हस्तियाँ सब कुछ बड़ा था|पर छोटे छोटे गाँवों,छोटे छोटे कस्बों,छोटे छोटे घरों में कई छोटी छोटी आशाएँ थीं,कई छोटी छोटी हिम्मतें थीं जो दम तोड़ रहीं थीं|
अखबार आधा सच और आधा झूठ समेटे हुए सामने पड़ा था|जहाँ उसके अग्रिम पन्ने आधे झूठ से सने थे,वही उसके स्थानीय पृष्ठ आधे सच को उघाड़ रहे थे|कुछ सच्चाइयाँ ऐसी होती हैं जो घटित होती हैं परन्तु खबरों का हिस्सा नहीं बन पाती|क्योंकि वो चुपचाप घटित हो जाती हैं|
लेकिन ये सच्चाई शीला के मौन को उद्वेलित कर रही थी|अगले ही पल शीला ने बौखला कर इस द्वन्द को दूर झटक कर फैंकना चाहा,”आखिर ये मेरा ही तो फैसला था और इसमें गलत क्या है?जीवन में इतना कुछ गलत होता रहा मेरे साथ कदम कदम पर एक औरत होने के कारण,क्या उसे रोक पायी मैं? नहीं न,फिर अब ये मंथन क्यों?इस एक गलत काम को करके शायद मैं आगे होने वाले कई गलत व्यवहारों को रोक सकी हूँ|हाँ,मैं सही हूँ,सही हूँ मैं|”
कभी इन बेतुकी दलीलों की मुखर विरोधी,नारी जागरूकता की प्रखर वक्ता,सही और गलत पर विशेष सोचने वाली शीला ने अपने जीवन में ऐसा क्या अनुभव किया? जो वह इतना बदल गयी और आज अपना गलत कदम भी उसे सही लग रहा था|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍
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