सही बेला में वापसी
सही बेला में वापसी
अपने तय पतों के बावजूद सही चौखटों तक ना पहुॅंचने का मलाल
धीरे-धीरे उनके शब्दकोश के उन सभी शब्दों को निगल जाएगा
जिन-जिन में थोड़ी उम्मीदें बची हैं।।
एक बहके साथी का हाथ पकड़, कसकर डॉंट-डपटकर लौटाना
इस समय जंग जीतने जैसा काम है।।
जंगल सूख रहा है तो उस जंगली फूल का शुक्रगुजार होना ज़रूरी है , जो खिल आया है
जिसका कोई नाम नहीं ।।
चॉंद-तारों का
आज की कविता से पलायन के बाद
बची-खुची खूबसूरत जगहों,चीजों और क्रियाओं को
अगर बचाना है
तो यही सही बेला है वापसी की।