सही फैसला
मेरी एक मित्र है जिसका नाम शिखा है , शिखा दिखने में बेहद खूबसूरत है , पढाई पूरी होने के बाद उसके माता पिता ने शादी के लिए वर तलाश करना शुरू कर दिया , अंत में उसकी सगाई एक आदित्य नाम के लड़के से तय हुई , आदित्य दिखने में बहुत ही आम शक्ल ओ सूरत का मालिक था परन्तु वो बहुत ही होनहार और एक अच्छी कंपनी में इंजीनियर के पद पे कार्यरत था |
शिखा को आदित्य ज़रा भी पसंद न था , वो न कहना चाहती थी पर कह न सकी फिर माता – पिता ने भी उससे कुछ यूँ बात की ” बेटा अगर तुम शादी के लिए हाँ कर देती तो बड़ा एहसान होता , समाज में हम भी सर उठा के चल सकते की हाँ अब हमने कन्यादान कर दिया , बाकि जैसी तुम्हारी मर्ज़ी ”
माता – पिता के इन भावपूर्ण ( मगर भावनात्मक ब्लैकमेलिंग करते हुए ज़्यादा प्रतीत होते शब्द ) वाक्यों ने शिखा के मन पे असर डाला उसने आदित्य से विवाह कर लिया |
शिखा ने आदित्य से विवाह ज़रूर कर लिया पर वो आदित्य के बाहरी रूप रंग से कभी भी खुश नहीं रही , वो हर एक से आदित्य की बुराई करती जबकि आदित्य बहुत सीधा हंसमुख और खुशमिज़ाज बंदा था और शिखा का बहुत ख्याल रखता था , इसी तरह सात साल बीत गए शिखा आदित्य के दो बच्चे भी हो गए लेकिन शिखा का व्यव्हार आदित्य और ससुरालवालों के प्रति रूखा ही रहा
एक दिन मेरा मिलना शिखा से हुआ अपनी आदत के अनुसार शिखा फिर से अपनी किस्मत को दोष देने लगी फिर मैंने शिखा को समझाया की देखो शिखा – ये बिना वजह आदित्य की बुराइयां करने से अच्छा था की तुम उस वक़्त आवाज़ बुलंद कर लेती जब तुम्हारी शादी तय हो रही थी , तुम उसी वक़्त न कह देती , अब जब विवाह हो गया …गृहस्थी पूरी बस गयी और आदित्य एक अच्छा इंसान है , तुम्हारी ख़ुशी का हर तरह से ख्याल रखता है तो फिर मात्र बाहरी रूप रंग से इतना खिन्न होना उचित नहीं , क्या हम सब आज से बीस साल बाद भी ऐसे ही दिखेंगे ? नहीं न तो यौवन तो नष्टप्राय है तुम बाहरी दिखावे के लिए इतनी उद्वेलित हो सखी ???? शिखा को शायद कुछ बात समझ आयी मेरी …कुछ बोली तो नहीं लेकिन गहरी सोच में डूब गयी |
कुछ अरसा बाद फिर से मैं शिखा से मिली इस बार वह वास्तविकता में प्रसन्न थी और बातों से लगा की वह आदित्य को दिल से स्वीकार चुकी है , मैंने सोचा – की गलत अकेले शिखा ही नहीं थी ….माता – पिता को भी बच्चों के मनोभावों का ध्यान रखते हुए शादी ब्याह के फैसले लेने चाहिए और बारीकी से अच्छे बुरे का ज्ञान कराना चाहिए न की कोई दबाव डालना चाहिए और बच्चों को भी बाहरी रूप रंग …धन दौलत से अधिक महत्व गुणों को देना चाहिए क्योंकि अंत में अच्छा – भला व्यवहार ही जीवित रह जाता है …शरीर का क्या है वो तो एक दिन जल जाना है या दफ़न हो जाना है , बहरहाल मुझे शिखा के अंततोगत्वा लिए गए सही निर्णय पे प्रसन्नता हुई और मैंने चैन की सांस ली |
– द्वारा नेहा ‘ आज़ाद ‘