Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Sep 2019 · 2 min read

सही निर्णय

लघुकथा
देह दान

रामलाल आईसीयू के बिस्तर पर पड़े कभी थोडी चेतना आने पर यहाँ वहाँ देखने लगते और उनके पास खड़े छोटे भाई देवीलाल से पूछते :
” बिट्टू आ गया ? ”
तब वह कहते :
” भाईसाहब बिट्टू को खबर कर दी है , उसने कहा है अगली फ़्लाईट से आ रहा है ।”
इसके बाद रामलाल फिर अतीत के झौंके में चले जाते ।
” बिट्टू के जन्म के समय बड़ी विकट हालत हो गयी थी , डाक्टर का कहना था , माँ और बच्चे में से कोई एक ही बच पायेगा । तब रामलाल ने हालातों को भगवान पर छोड़ दिया था । अब बिट्टू तो बच गया था लेकिन उनकी जीवनसाथी रंजना चली गयी थी ।
कई लोगों शे सलाह दी दूसरी शादी कर लो बिट्टू की देखभाल हो जाएगी । लेकिन रामलाल, रंजना के अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकते थे ।
डाक्टर की सलाह पर उन्होंने खुद ही बिट्टू की परवरिश की थी और कहीं कोई कमी नहीं छोडी थी ।
बिट्टू अच्छी पढाई करके विदेश चला गया वहीं उसने अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर ली थी ।
बेटे की खुशी में रामलाल भी खुश थे ।
समय गुजरता जा रहा था । दो तीन साल में बिट्टू कभी अकेला तो कभी बहू बच्चों के साथ आ जाता था थोड़े दिन हँसी खुशी से कट जाते ।
धीरे धीरे अंतराल बढता गया और अब तो बहुत लम्बे से नहीं आया था । इस बीच रामलाल की तबियत बिगड़ गयी और वह आईसीयू में भर्ती हो गये ।
इस बीच रामलाल की तंत्रा भंग हुई और आसपास देखा कोई नहीं था । बाहर से कुछ अस्पष्ट आवाजें आ
रही थी ।
” देवीलाल कह रहे थे :
” डाक्टर कह रहे थे : ” भाईसाहब की हालत ठीक नहीं शायद ही रात गुजरे , बिट्टू को यह बता दिया है लेकिन वह कह रहा है :
” चाचा जी सब फ़्लाईट भरी हैं , मैं नही आ पाऊंगा आप पिताजी का संस्कार कर देना मैं पैसे आपको भेज दूंगा। ”
जबकि वास्तविकता रामलाल समझ रहे थे ।
देवीलाल की पत्नी कह रही थी :
” बिट्टू की करनी हम भुगते , वह जानबूझकर नहीं आ रहा है ।”
रामलाल अब तक सब समझ चुके थे । जब उनका बेटा साथ नहीं दे रहा तब बाकी लोग भी कट रहे थे । रामलाल की आती जाती याददाश्त कमजोर होती जा रही थी और शरीर मन सब साथ छोड़ रहा था।
रात को डाक्टर आये ।
रामलाल ने धीरे धीरे बुदबुदाते हुए कहा :
” मैं मरने के बाद अपने शरीर को किसी पर बोझ नही डालना चाहता , मैं स्वेच्छा से अपने देहान्त के बाद अपनी देह दान कर रहा हूँ ।”

देह दान का निर्णय रामलाल ने हालातों को देखते हुए लिया था । लेकिन बिट्टू और देवीलाल खुश थे , वह दाह संस्कार की लम्बी प्रक्रिया से मुक्त हो गये थे ।

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
1 Like · 272 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नए दौर का भारत
नए दौर का भारत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
दोहा छंद विधान
दोहा छंद विधान
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
gurudeenverma198
शराफत नहीं अच्छी
शराफत नहीं अच्छी
VINOD CHAUHAN
फागुन आया झूमकर, लगा सताने काम।
फागुन आया झूमकर, लगा सताने काम।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
Rituraj shivem verma
*हेमा मालिनी (कुंडलिया)*
*हेमा मालिनी (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
यक़ीनन एक ना इक दिन सभी सच बात बोलेंगे
यक़ीनन एक ना इक दिन सभी सच बात बोलेंगे
Sarfaraz Ahmed Aasee
■ एक स्वादिष्ट रचना श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या कान्हा जी के दीवानों के लिए।
■ एक स्वादिष्ट रचना श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या कान्हा जी के दीवानों के लिए।
*प्रणय प्रभात*
तुझे भूले कैसे।
तुझे भूले कैसे।
Taj Mohammad
*बारिश सी बूंदों सी है प्रेम कहानी*
*बारिश सी बूंदों सी है प्रेम कहानी*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
" सोहबत "
Dr. Kishan tandon kranti
जब किसान के बेटे को गोबर में बदबू आने लग जाए
जब किसान के बेटे को गोबर में बदबू आने लग जाए
शेखर सिंह
मजदूरों से पूछिए,
मजदूरों से पूछिए,
sushil sarna
विश्व वरिष्ठ दिवस
विश्व वरिष्ठ दिवस
Ram Krishan Rastogi
"UG की महिमा"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
कशिश
कशिश
Shyam Sundar Subramanian
विरोध-रस की काव्य-कृति ‘वक्त के तेवर’ +रमेशराज
विरोध-रस की काव्य-कृति ‘वक्त के तेवर’ +रमेशराज
कवि रमेशराज
करूँ तो क्या करूँ मैं भी ,
करूँ तो क्या करूँ मैं भी ,
DrLakshman Jha Parimal
मन की प्रीत
मन की प्रीत
भरत कुमार सोलंकी
हिंदी दिवस
हिंदी दिवस
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
गर तुम मिलने आओ तो तारो की छाँव ले आऊ।
गर तुम मिलने आओ तो तारो की छाँव ले आऊ।
Ashwini sharma
मौसम ए बहार क्या आया ,सभी गुल  सामने आने लगे हैं,
मौसम ए बहार क्या आया ,सभी गुल सामने आने लगे हैं,
Neelofar Khan
छोड़ने वाले तो एक क्षण में छोड़ जाते हैं।
छोड़ने वाले तो एक क्षण में छोड़ जाते हैं।
लक्ष्मी सिंह
*खादिम*
*खादिम*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
निबंध
निबंध
Dhirendra Singh
गहरी हो बुनियादी जिसकी
गहरी हो बुनियादी जिसकी
कवि दीपक बवेजा
किसी की याद में आंसू बहाना भूल जाते हैं।
किसी की याद में आंसू बहाना भूल जाते हैं।
Phool gufran
रमल मुसद्दस महज़ूफ़
रमल मुसद्दस महज़ूफ़
sushil yadav
Loading...