सहिष्णु
एक मुक्तक।
कल तक तो इन सबको देखो होती चिंता भारी थी।
बात बात पर जीभ सभी की पैनी छुरी कटारी थी।
आज सहिष्णु चुप बैठे हैं घाटी के हालातों पर।
शायद उस आतंकी से इन सबकी रिश्तेदारी थी।
प्रदीप कुमार
एक मुक्तक।
कल तक तो इन सबको देखो होती चिंता भारी थी।
बात बात पर जीभ सभी की पैनी छुरी कटारी थी।
आज सहिष्णु चुप बैठे हैं घाटी के हालातों पर।
शायद उस आतंकी से इन सबकी रिश्तेदारी थी।
प्रदीप कुमार