सहानुभूति है तुझसे
आ
ओ नवजात शिशु
नव वर्ष आ(2)
सुनी तेरी
पहली किलकारी
हर चेहरे पर मुस्कान खिली
तू नव किसलय सा है न
इक नवल कोंपल सा
दुधमुहां है और है अबोध
और इसीलिए तू
भा रहा है, रिझा रहा है
सबको
क्यों कि बंद हैं तेरी नन्हीं रक्तिम मुट्ठी में
असंख्य अनखुले स्वप्न
किन्तु
जैसे जैसे शनैः शनैः
लेगा बढ़त तू
समय के थपेड़े
तेरी कोमल काया को
कर देंगे कलुषित
क्यों कि वक्त किसी को नहीं बख्शता ।
याद है जिस दिन
जन्म हुआ था तेरा
कितनी दावतें कितना हो हल्ला
और उफ! कितने पटाखे चले थे
तेरे पैदा होने की खुशी में
अब धीरे धीरे
यह तेरी पदचाप की थपक
नहीं है
आने वाले वक्त की आहट है यह
धीरे धीरे डराने लगेगी
तेरी कमनीय काया को
कुछ कुछ
हटने लगेगी निगाहें तुझ पर से
वासंती बयारों में तेरा
यौवन जो लहका था
सरसों सा महका था
कुछ अच्छा घटा
तो निखरा तेरा रूप,
वरना जीवन के पूर्वार्द्ध में ही
तू कोसा जाने लगेगा कि…..
देखो कैसा बुरा आया यह साल।
आते ही भूकंप त्रासदी दुर्घटनाएं
आते ही ये… वो… और न जाने क्या क्या
खैर
धूप की तपन व गर्मी में
कुछ कुछ
तन झुलसने लगा तेरा
इसी बीच लोग बने
काल का ग्रास
आकर चपेट में लू की
ताप से जलीं फसलें
इल्ज़ाम सिर्फ तुझ पर….
यह साल कैसा बुरा आया
बर्बादी ही बर्बादी…..
वक्त के थपेड़े से
मर्माहत
तन मन तेरा
यह समझ न पाया
क्या दोष है मेरा
मन की जलन धुंआ बन उठी
घुटन ले रूप घटाओं का
उमड़ घुमड़ कर
आया आँसुओं का सैलाब
बरसा बन बारिश
अब कहर बरपाया
पानी ने
बाढ़.. विप्लव.. तो कहीं
अल्प वृष्टि..
दोष
यह साल बुरा ही निकला…
इसी उहापोह में
जिन्दगी मुरझा गयी
और जीवन की शाम आ गयी।
सबसे अपनी धुन में मस्त
किसी को तुझसे क्या लेना देना
वो तो करना हो दोषारोपण
तब आती है याद तेरी…
हां कुछ अपवाद
होते हैं हर जगह
जो मानते हैं तुझे शुभ…
अपनी उपलब्धि पर।
पर नगण्य है संख्या
ऐसी विभूतियों की…
चलो….
जैसे तैसे
जीवन की अंतिम बेला
भी आ ही पहुँची
और विधि का विधान
अवश्यम्भावी है……
कहकर
तुझे दिया ढकेल
अनंत अंधकार में….
लेते हुए यह निष्कर्ष कि क्या क्या तुझसे
हासिल कर पाया यह स्वार्थी मानव।
परिस्थितियों और भाग्यवश
यदि हुआ अच्छा कुछ हासिल
तो मानता कि भाग्य मेरा
यदि बुरा हो हासिल
तो तू बुरा…..
यह है दुनिया
और यही है रीत इस जग की।
अब जबकि सम्मुख है एक नववर्ष…..
क्या काम अब पुराने का ?
आने वाले का बोलबाला
जाने वाले का मुंह काला
यह था प्रारब्ध तेरा……
और यही है नियति तेरी।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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