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22 Aug 2021 · 1 min read

शहर का अंधेरा

मेरे शहर तेरे दिल मे फैला अंधेरा है, उजाला बिखरा है सड़कों पर ।
सड़क किनारे फिर भी कोई बैठा, नंगा-भूखा-अपाहिज अकेला है ।।

चमचमाती तेरी गाड़िया, और बिखरती इतर की खुशबुएँ ।
इस अमीरी का रंग दूसरा है, सफेद कम ये काला गहरा है।।

बेशर्म और बेहयाई का कलेबर, चढ़ा तुझ पर ज्यादा गहरा है ।
धुँआ उगलता है तू, और गरीबों की सांसों पर लगता पहरा है।।

आलीशान दिलकश नजारे है, तेरे महलों के किनारों के ।
लगता है जीवन यही तुझको, मगर इनमें पत्थरों का वसेरा है।।

जिंदगी आवाद होती है, धरती की धूल में सनकर ।
महलों की मीनारों पर, चील-गिद्दों का होता सवेरा है ।।

तेरा वक्त है हँसले रगड़कर इंसानियत को तलबे से ।
इसी हैवानियत की खातिर, तू पसीजता अकेला है ।।

है कोई भगवान या है कोई अल्लाह, मालूम नही मुझको ।
वक्त आने पर इसी वक्त पर मेरा, विस्वास ठहरा है ।।

मेरे शहर तेरे दिल में फैला अंधेरा है…

Language: Hindi
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