सहयोग
सहयोग
आज इस दौड़ भाग की जिंदगी में लोग चाह कर भी अगर किसी की मददत करना चाहे तो नही कर सकते।और लोग धनधान्य से पूर्ण होने के बाद भी किसी को सहयोग नही देते आज में एक सत्य घटना को अपने शब्दों में लिखने का प्रयास कर रही हूँ।
आज शासकीय स्कूलों में दिनों दिन छात्रों की संख्या कम होते नजर आ रही है।और ये सब प्राइवेट स्कूलों की चकाचोंध को देख ही लोग अपने बच्चों को शासकीय स्कूल में दाखिला नही दिलाते और न जाने कितनी दोषारोपण बेवजह के शासकीय कर्मचारियों पर मढ़ते है।
एक ऐसी ही शाला का मैं सच बताना चाहती हूँ।जहाँ बच्चे कम होने की वजह से मध्यांह भोजन की राशि बहुत ही कम होने के कारण बच्चों को मेनू अनुसार भोजन देना मुश्किल हो जाता है।फिर साथ में छोटे भाई या बहन भी उनके साथ शाला में आते है अब और भी मुश्किल हो जाता है। सभी को खाना की जरूत पड़ती है।अब शाला में सभी ग्रामीण परिवेश के बच्चे आते।जो अधिकाशं गरीब परिवार से ही आते है।सरकार इन्हें मुफ्त में खाना, कपड़े, पुस्तकें, स्कालरशिप देती।परन्तु इनकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर होती है कि अधिकांश के माता पिता कॉपी, स्लेट, कलम भी ठंग से व्यवस्था नही कर पाते।इन सब समस्या को देखते हुए वहाँ पर पढ़ाने वाले शिक्षक और शिक्षिका दोनों ने मिलकर बच्चो को भर पुर भोजन मिल सके इसके लिए हर महीने एक एक हजार रुपये की सहयोग राशि प्रदान की और समय समय पर बच्चों की जरूरत अनुसार पेन कॉपियां भी वितरित करते रहते है। इस प्रकार सहयोग कर बच्चो के शिक्षा का स्तर अच्छे से अच्छा बनाना और पौष्टिक भोजन देने का प्रयास किया गया।
सहयोग व्यक्ति को जरूर करना चाहिए अपनी सामर्थ्यता के अनुरूप।मन को किसी की मददत करके जो खुशी मिलती है।वो और किसी काम को करने से नही मिलती हमेशा गरीबो दुखी और असहाय लोगो की मददत करने में आंगे रहना चाहिए।
गायत्री सोनु जैन