सहयोग आधारित संकलन
सहयोग आधारित संकलन
साहित्य सेवा का नाम देकर सहयोग आधारित संकलन निकालने के नाम पर हो रही उगाही से दुखी दो वरिष्ठ साहित्यकार गंभीर चर्चा कर रहे थे.
पहला :- “हद है यार, आजकल जिसे देखो वही सहयोग के आधार पर संकलन निकालने में व्यस्त है. साहित्य के नाम पर कुछ भी लिखवाकर हजार-पंद्रह सौ रुपए सहयोग राशि ले संकलन निकाल लिए. ऊपर से ये फेसबुक, विज्ञापन दिए नहीं कि पंद्रह-बीस स्वयंभू धनपति लेखक संकलन में शामिल होने को उतावले बैठे ही हैं. बस चल गई दुकान.
दूसरा :- और इसका सबसे ज्यादा फ़ायदा उठा रहे हैं प्रकाशक. वैसे भी आजकल के ज्यादातर प्रकाशक खुद ही तथाकथित साहित्यकार हैं. अब सम्पादक भी बन जा रहे हैं. जो ये नहीं कर पा रहे हैं, वे पड़ोसी या जान-पहचान के साहित्यकारों से सम्पादन करा रहे हैं.
पहला :- एकदम सही कह रहे हो आप. पर हम कर ही क्या सकते हैं ?
दूसरा :- पर यूं हाथ पर हाथ धरे बैठ भी तो नहीं सकते ?
पहला :- हां ये भी सही कह रहे हैं आप ? कुछ सोचा है कि क्या करना है ?
दूसरा :- मुझे लगता है कि हमें निस्वार्थ भाव से सौ नए साहित्यकारों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बिना किसी सहयोग राशि लिए एक संकलन का प्रकाशन करना चाहिए. अब सहयोग राशि नहीं लेंगे तो स्वाभाविक है कि लेखकीय प्रति देना संभव नहीं होगा. सौ नग डेढ़ सौ पेज की पुस्तक की प्रिंटिंग कास्ट लगभग पंद्रह-सोलह हजार रुपये आएगी. अब नए साहित्यकार होंगे तो स्वाभाविक है कि कम से कम एक प्रति पुस्तक तो खरीद ही लेंगे. यदि कीमत ढाई सौ रुपये भी रखा जाए और अस्सी लेखक एक-एक प्रति भी खरीद लें, तो बीस हजार रूपए बन ही जाएँगे. मतलब कोई नुकसान तो होगा नहीं.
पहला :- बिलकुल सही कह रहे हैं आप. और फिर हम किसी को मजबूर तो करेंगे नहीं कि रचना भेजो या किताब खरीदो.
दूसरा :- तो फिर ये तय रहा कि हम इस प्रकार निस्वार्थ भाव से सौ नए साहित्यकारों को लेकर एक संकलन निकालेंगे.
पहला :- जरूर. शुभष्य शीघ्रम. मैं अभी फेसबुक में इसके प्रचार के लिए पोस्ट जारी कर देता हूँ. देखिये मना मत करिएगा, सम्पादक तो आप ही रहेंगे.
दूसरा :- ठीक है अब आप इतना आग्रह कर रहे हैं तो मैं आपको मना तो नहीं कर सकता न.
फिर क्या था कुछ ही समय में लाइक-कमेंट्स शुरू हो गए.
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़