सहधर्मिणी
तुम यदि जीवन मे न मिलते
अश्रु दृगों से कभी न ढलते
हाँ तुमने मुस्कान मुझे दी
लेकिन रोना भी सिखलाया
मैं तो कभी न हुआ किसी का
सबका होना भी सिखलाया
मंजिल पर तो दृष्टि नहीं थी
यूँही निरुद्देश्य थे चलते
तुमने आकर इस जीवन को
जीने जैसा बना दिया है
पोखर जल को गंगाजल सा
पीने जैसा बना दिया है
इस उजड़ी जीवन बगिया मे
तुम न आते सुमन न खिलते