सहज हूँ
मैं सहज हूँ,
हर बात में सहज हूँ
नोच लो, खरोच लो, चीर दो
घसीट लो, दबोच लो,
ढकेल दो या उठाने फेंक दो,
वासना की हद तक,
तुम मेरा भोग लो,
जान से, जहान से
हर चीज़ से विरक्त हूँ
मान क्या, स्वाभिमान क्या
हर वेदना में सहज हूँ
मैं हर बात में सहज हूँ
बेवजह क्यों ललकारता?
रूह से खाली पड़ा,
ये जिस्म मंडरा रहा,
रक्त से विहीन हूँ,
नसों में लाल नीर रेंगता
खौलना तो दूर है,
ये हिम में विलीन है,
मन क्या, मस्तिष्क क्या
ये शरीर भी सहज है
विरोध से, विद्रोह से
इन भाव से सैकड़ों मील दूर हूँ,
पूछना न इच्छा मेरी, थोप दो
हर चीज़ से आश्वस्त हूँ
ये वहम कायम रहे
भाग्य का सब दोष है
चेतना को दफन कर,
बैठा बंदर के झुंड में,
तोते-सा बड़बड़ा रहा,
गिद्ध से तैयार तुम
जमीं पर, मै गिर रहा
आओ नोच लो, सहज हूँ
सांस चल रही है
फिर भी सहज हूँ
जंजीर से बंधा नहीं
फिर भी मै कैद हूँ
विवशता की हद है,
कि एक बाजू से दूसरी बाजू ,
मैं उखाड़ता
चीख तो रहा हूँ,
पर आवाज की तलाश है
फिक्र न करो, ये महज इत्तफ़ाक हैं
ऐसे हर इत्तफ़ाक से सहज हूँ,
मैं हर बात में सहज हूँ
मैं सहज हूँ
सहज हूँ, सहज हूँ………