‘सहज’ के दो मुक्तक:
(एक)
बंद आँखों से दिखेगा. कब उजाला.
बंद होगा छीनना, कबसे निवाला.
अब है पिटता दिख रहा, हमको लुटेरो,
जल्द ही सारी उमर का, अब दिवाला.
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(दो)
ज्योति ज्ञान की, बुझने मत दो.
सुखद भविष्य . उलझने मत दो.
जीवन रहे, अहर्निश ऐसा ,
द्वेष – बैर अब, पलने मत दो.
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@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता / साहित्यकार
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