“सहजता की चाह”
“सहजता की चाह”
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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हमने भी सोचा एक अद्भुत रचना ही बना डालें ,
अच्छे- अच्छे अलंकृत शब्दों से उनको सजा डालें।
देखते -देखते हमने शब्दों का बेजोड़ चयन किया ,
डिक्शनरीऔर इन गूगल के गुर्दों से निकाल लिया।
अब तो बेमेल शब्दों से अलंकृत कविता कर दिया ,
भाव के विपरीत शब्दों को उल्टा -सुलटा कर दिया।
हमें माँग में सिंदूर भरना था श्रृंगार हमने कर दिया ,
जल्दी में हमने भूलकर कनपट्टी में सिंदूर भर दिया।
गर्व से हम अपने सिने को रह -रहकर फूलाने लगे,
अलंकृत श्रृंगार शायद सभीको विभस्त लगने लगे।
सबने देखकर अपना मुंह दुसरी तरफ फेर लिया,
रचना का मूल भाव को शब्दों ने बेकार बना दिया।
कविता को सरलता के आवरण में ही रहना चाहिये,
शब्द ,भाषा और सहज ताल लय में लिखना चाहिए !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका