सहगर किनारे
सागर किनारे (ग़ज़ल)
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हम सागर के किनारे,
बैठें हम बे सहारे।
दिल है तपती सलाखें,
मिलती शीतल फुहारें।
छाया मय सा नशा है,
नजरें तुम को निहारें।
तन्हां रोती अकेली,
विरही गम में पुकारे।
नभ में उड़ता परिंदा,
ऑंखों के हो सितारे।
आओ बैठो निहारूँ,
प्यारे न्यारे दुलारे।
मनसीरत है सहारा,
साजन जी हैं पधारे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)