Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Nov 2023 · 10 min read

*सहकारी-युग हिंदी साप्ताहिक का दूसरा वर्ष (1960 – 61)*

सहकारी-युग हिंदी साप्ताहिक का दूसरा वर्ष (1960 – 61)
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
दूसरे वर्ष का शुभारम्भ सहकारी युग ने 28 पृष्ठीय स्वतंत्रता दिवस विशेषांक के मुख पृष्ठ पर ज्ञान मंदिर से सम्बन्धित यह समाचार छाप कर किया, जिसमें रामपुर से लखनऊ स्थानान्तरित होने के पूर्व जिला एवं सेशन्स जज श्री आर० एन० शर्मा ने ज्ञान मंदिर पधार कर मत व्यक्त किया है, कि ज्ञान मंदिर ‘के पास स्थान की भारी कमी है और अगर यह कमी पूरी हो जाये तो जनता की काफी सेवा हो सकती है। आपने कहा कि अगर मैं ज्ञान मंदिर न आता तो मुझे यह बहुत बड़ी कमी बन कर खटकती।” (15 अगस्त 1960)
यह वही दौर था जब सहकारी युग ज्ञान मदिर को पुरातन भवन के स्थान पर नए विशाल भवन में लाने के लिए समर्पित साहित्यिक निष्ठा से जुझारू आन्दोलन की अगुवाई कर रहा था।
इसी अंक में प्रकाशित पत्र से प्रमाण मिलता है कि उत्तर प्रदेश भारत सेवक समाज के अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री आत्मा राम गोविन्द खेर ने सहकारी युग की अनेक प्रतियां पढ़ने पर इसे “देश के नागरिक निर्माण कार्य” में महत्वपूर्ण हिस्सेदार बताया है।
सहकारी युग की नीति बिना लाग-लपेट खरी- खरी बात कहने की रही और सम्पादकीय अतीत से जुड़ कर संकल्प व्यक्त करता है कि “सहकारी युग ने पार्टीबंदी एवं व्यर्थ की टीका- टिप्पणी से घृणा की है।” (15-7-60 )
पत्र विश्वास करता है कि “रामपुर के समुचित विकास, निर्माण एवं प्रगति की दिशा में ही चलते रहने में” उसे सबका सहयोग मिलेगा।

इसी अंक में महेन्द्र प्रसाद गुप्त की सशक्त लेखनी से दो पृष्ठ के लगभग का शोधपूर्ण लेख “रामपुर के नवाबों का अंग्रेज प्रेम और रूहेलों का इतिहास” शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। नवाब हामिद अली खां के विषय में लेखक का मत है कि वह “अंग्रेजों के बफादार थे।” और उन्होंने जनता को “शिक्षा की ओर, उद्योगों और व्यवसायों की ओर न ले जाने में कामयाबी हासिल की।
ज्ञान मंदिर पर हमेशा रियासत की कोप दृष्टि रही। स्व० मौहम्मद अली शौकत अली के निमन्त्रण पर गांधी जी भी (रामपुर) पधारे। (मगर) गांधी जी रामपुर से गए और सियासी तहरीक को कुचलने का इन्तजाम हुआ।। अंग्रेज भक्ति का प्रमाण यह भी है कि सन् 14 के युद्ध में अफ्रीका के मुम्बास में रामपुर की फौजें अंग्रेज की ओर से लड़ने गयीं।” (15 अगस्त 1960)

18 अगस्त 1960 को सहकारी युग प्रिटिंग प्रेस का उद्घाटन श्री एल० एन० मोदी के कर कमलों द्वारा कांग्रेसी नेता प० केशवदत्त की अध्यक्षता में समारोह पूर्वक हुआ और पत्र को वह सुदृढ आाधार प्राप्त हुआ जो इसके प्रकाशन की निरन्तरता को स्थापित करने में अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ ।

29 सितम्बर 60 का अंक सूचित करता है कि 3 अक्टूबर को रात्रि 8 बजे ज्ञान मंदिर के तत्वावधान में जनप्रिय कवि डा० हरिवंश राय बच्चन के सान्निध्य में साहित्यिक समारोह होगा। ज्ञातव्य है कि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र इस दौर में सहकारी युग बन गया था और रामपुर के सार्वजनिक जीवन में साहित्यिक अभियान के विस्तार का कठिन काम इसने अपने कंधों पर उठाया था ।

साहित्यिक गतिविधियों को सहकारी युग ने सर्वोपरि स्थान दिया। 6 नवम्बर 1960 का अंक मुख पृष्ठ पर मुख्य समाचार देता है :- ‘ रामपुर में साहित्य समाज एकत्र हुआ ।’ समाचार का अंश है ‘राजकीय रजा डिग्री कालेज रामपुर के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो० शिवादत्त द्विवेदी के आह्वान पर साहित्य रसधारा का आनंद लेने के लिए एकत्र हुए। समाज पर यह टिप्पणी की जा रही है कि रामपुर में प्रथम बार विद्वानों के आह्वान पर विद्वानों का जमघट हुया, जिसका उद्दे‌श्य एकाध ब्यक्ति द्वारा गुरूडम प्राप्त करने की लालसा नहीं थी। उपस्थित समाज में उल्लेख योग्य व्यक्ति थे श्री जे० पी० अग्रवाल, प्रो० वि० श० शुक्ला, प्रो० नकवी, प्रो० रणवीर बिहारी सेठ, प्रो० ईश्वर शरण सिंहल, श्री रामावतार कश्यप पंकज आदि । सभापति का आसन वास्तव में आशु कवि माने जाने वाले श्री राधा मोहन चतुर्वेदी ने ग्रहण किया। …कार्यक्रम साहू केशो शरण जी के निवास स्थान पर आयोजित किया गया था।”

7 दिसम्बर 1960 का संपादकीय रामपुर के स्थानीय नेताओं से अपनी पूरी ताकत के साथ रामपुर में उद्योगों को स्थापना की आवश्यकता सरकार के सामने रखने में समर्थ” होने का आह्वान करता है, तो 17 दिसम्बर 60 का अंक ‘हमारे पंचमागी’ शीर्षक सम्पादकीय में मुस्लिम लीग के सिर उठाने पर चिन्ता प्रकट करता लिखता है कि भारत विभाजन के ’13 वर्षं’ गुजरने के बाद और केरल के चुनाव गठबन्धन के उपरान्त मुस्लिम लीग ने भारत में अपने पैर पसारना शुरू कर दिए हैं। अब तो उसका प्रसार भारत व्यापी आधार पर किया जा रहा है”

तत्कालीन कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित इन अफवाहों पर कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस प्रकट होने वाले हैं, सहकारी युग भावुक भाषा में सम्पादकीय लिखता है- ” सुभाष चन्द्र बोस के प्रति किस अभागे को श्रद्धा नहीं होगी, और कौन नहीं चाहता कि वह भारतीयों के मध्य यदि जीवित हैं तो जीवित ही प्रकट हो जायें और यदि शरीर त्याग कर चुके हैं तो पुनः जन्म लेकर समाज के सम्मुख प्रकट हों। दूसरे अर्थों में समाज यह चाहता है कि जो भी बालक हमारे समाज में जन्म लें वह सुभाष बोस बनें और जो लोग भी आज जिन्दा हैं, मरे नहीं हैं, सुभाष चन्द्र बोस के समान बनें।” प्रसंगवश पत्र लिखता है “नेहरू और सुभाष की तुलना इस प्रकार करिए : आजादी का सिपहसलार नेहरू आजादी के बाद बुराइयों के बीच बने समाज का प्रधानमंत्री । सुभाष – आजादी की लड़ाई का और घोर अद्भुत सिपहसलार + कुछ नहीं । स्पष्ट है कि आजादी के पहले के नेहरू और सुभाष दोनों पर ही भारत देश और विश्व के स्वतंत्रता प्रेमी राष्ट्र समदृ‌ष्टि से श्रद्धा करेंगे” (14 जनवरी 61)

26 जनवरी 1961 का विशेषांक सामान्य अंक से आधे आकार का छपा है और कुल 56 पृष्ठ की लघु पुस्तिका बन गया है। इस अंक का मुख्य आकर्षण ” रामपुर की रियासत और सियासत” शीर्षक का वह लेख है जिसमें नवाब रजा अली खां के शासन काल में रामपुर रियासत के राजनीतिक घटना चक्र पर विस्तार पूर्वक लगभग 5 पृष्ठों में प्रकाश डाला है । वयोवृद्ध कांग्रेस नेता मौलवी श्री अली हसन खां से प्राप्त जानकारी के आधार पर महेन्द्र जी की लेखनी से निःस्रत यह लेखमाला रामपुर के रियासती राजनीतिक इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज बन चुकी है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा रामपुर में होली त्योहार को गरिमामय, मर्यादित और सहृदयतापूर्वक मनाने के संगठित प्रयास को सहकारी युग ने एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर दर्ज किया- ‘संघ का जुलूस हर वर्षों की भांति बड़ा तो था ही किन्तु विशेषता यह थी कि कहीं भी प्रतिहिंसा की भावना से किसी पर भी रंग डालने की घटना जलूस के संचालकों ने घटित नहीं होने दी। इस जलूस में सर्वसाधारण का भारी सहयोग था, जिसका संचालन तरुण एवं समाजसेवी कार्यकर्ता श्री रामप्रकाश सर्राफ के हाथों हो रहा था।” ( 7 मार्च,1961)

24 फरवरी 1961 के लेख में सहकारी युग लिखता है कि संसद, विधान सभा और जिला परिषद के चुनावों में “समाज अपने वोट का इस्तेमाल पूरी तरह ऑंख खोधलकर करे, झूठे नारों से गुमराह होकर न करे।” जाति और सम्प्रदायगत आधार को नकारते हुए पत्र “योग्य, श्रेष्ठ और सब तरह से पद के उपयुक्त” व्यक्तियों को चुनने का आह्वान करता है।

गृहमंत्री पं० गोबिन्द वल्लभ पंत के देहान्त पर संपादकीय भाव. विह्वल होकर लिखता है “तुम चले गये पंत जी ! हा तुम चले गए !! और गये भी तो उस वक्त जब न गांधी हैं, न पटेल हैं, समस्याओं के भॅंवर में फंसी भारत की नौका की़ गति में हर क्षण डगमगाहट बढ़ती जा रही है। इस राष्ट्र की नौका को जो प्रहार थपेड़े सहने पड़ रहे हैं वह हैं ‘शक्ति के लिए-कुर्सी के लिए-तोड़ पछाड़ के’ और इन प्रहारों को प्रभावहीन बनाने के लिए, जनतंत्र को जीवित तथा जाग्रत रखने के लिए पं० पंत ! तुम्हारी बेहद आवश्यकता थी। पंत जी ! तुम्हें जरूरत नहीं थी कुर्सी की, ताकत की, बल्कि तुम तो स्वयं शक्तिपुंज थे और मित्रों को शक्ति दिया करते थे।” ( 24 मार्च 1961)

चीन के खतरे को पूरा देश महसूस कर रहा था और इसी खतरे से आगाह किया कवि रामावतार कश्यप पंकज ने पूरे देश को, सहकारी- युग के 7 अप्रैल 1961 के अंक में अपनी कविता “चीन को चुनौती” शीर्षक से ।

8 मई 1961 को टैगोर जन्म शताब्दी के अवसर पर पत्र ने उन्हें “चतुर्मुखी प्रतिभा से सम्पन्न, भारतीय सुधारवाद के महान प्रवर्तक” को संज्ञा दी और कहा कि “टैगोर की उदार वत्ति से इस देश का ही नहीं मानवमात्र का लाभ हुआ है। इनके मार्गदर्शन ने न केवल संस्कृतियों को समीप किया है अपितु पारस्परिक कड़वाहट को भी दूर किया है। सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्रों में अमर विभूतियों का स्मरण तथा अध्ययन राजनीति के द्वारा उत्पन्न कड़वाहट दूर करने में सहायक होगा ।”

29 मई 1961 के संपादकीय में सहकारी युग ने श्री वी० वी० गिरि के पत्रकारिता विषयक वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए ‘ पत्रकारों के मित्र श्री वी० वी० गिरी’ शीर्षक से लिखा ‘पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह महान कर्तव्य हो जाता है कि वह सबसे पहले अपनी स्थिति को समझे कि कहीं उसके तौर तरीकों से पत्रकारिता के पवित्र मिशन, व्यवसाय नहीं, की प्रतिष्ठा को धक्का तो नहीं लगा रहा और उसे विश्वास हो जाये कि उसके द्वारा अपनाया गया मार्ग सर्वथा न्याय का मार्ग है तो इसके बाद उसे खोजना चाहिए उन स्वार्थी तत्वों को जो या तो अचानक इस क्षेत्र में घुसे हैं या अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पत्रकार बन बैठे हैं। अवांछनीय तत्वों का इस क्षेत्र में प्रवेश हुआ है, इसमें दो मत हो ही नहीं सकते।”

इसी अंक के एक अन्य संपादकीय में सुल्तानपुर से हारे कांग्रेसी उम्मीदवार श्री के० सी० पंत की पराजय के बहाने सहकारी युग बुनियादी बात कहता है कि ‘जनता की इच्छा के विरुद्ध’ बाहर से जबरदस्ती लादे गये भाग्य-विधाताओं को जनता हर बार स्वीकार शायद ही करे-यह कांग्रेस को समझ लेना चाहिए । कांग्रेस की प्रशंसा करते हुए पत्र लिखता है कि ‘ आज भी भारत की समस्त राजनीतिक पार्टियों में योग्य और ईमानदार” सक्षम और कार्य कुशल नेताओं तथा कार्यकर्ताओं की सबसे अधिक संख्या कांग्रेस में ही है किन्तु विवशता पूर्वक यह भी सत्य माना जाने लगा है कि बेईमानी, अयोग्यता जैसे प्राणघातक तत्व भी अन्य पार्टियों को अपेक्षा कांग्रेस में ही ज्यादा हैं । बाद के तत्व शायद हावी हैं।”

10 जून 1961 के अंक का सम्पादकीय रामपुर नवाब की बढ़ती हुई खुली राजनीतिक शक्ति पर महत्वपूर्णं जनतांत्रिक एतराज उठाता है और कांग्रेस में उनके “महत्वपूर्ण केन्द्र” बनने और “जिले के (कांग्रेसी) नेताओं को बुला कर एक लड़ी में पिरो” देने को भयावह आशंका के रूप में ग्रहण करता है। पत्र तीखे तेवर के साथ लिखता है, “कांग्रेस में फूट खत्म करने का हर प्रयास स्वागत के योग्य है क्योंकि कांग्रेस आज भी सबसे बड़ा राष्ट्रीय संगठन है किन्तु इन प्रयासों के पीछे काम करने वाली भावना को देखना ही पड़ेगा अन्यथा परिणाम भयंकर हो सकते हैं। समाजवादी समाज की स्थापना का स्वप्न छिन्न-भिन्न हो सकता है, हमारे नेतागण जिन से आज हम जनतंत्र की रक्षा और अभिवृद्धि की अपेक्षा करते हैं, वह कल राजा-महाराजाओं को उनको स्टेट्स (रियासतें) वापिस दिलाने का नारा बुलन्द कर सकते हैं अर्थात हमारी आजादी का नक्शा भी बदल सकता है। उ० प्र० कांग्रेस का इस मौके पर कर्तव्य हो जाता है कि वह उन समस्त तत्वों से प्रभावित न हो जो समाजवादी समाज की कल्पना में फिट नहीं बैठते। रामपुर के नवाब का रामपुर की जनता ने सम्मान किया है किन्तु रियासत के विलीनीकरण के बाद रामपुर के प्रति उनकी उदासीनता ने जनता को निराश किया है। उनका जीवन अब उनके लिए है, उनका पैसा, जिसके बड़े परिमाण के कारण वह भारत के कुछ गिने चुने धनाड्यों में माने जाते हैं उन्हीं के लिए है।”

“मुस्लिम कन्वेंशन पूरा देश डा० सम्पूर्णानन्द के स्वर में स्वर मिलाए” शीर्षक से अपने सम्पादकीय (16 जून 1961) में सहकारी युग लिखता है ” इलेक्शन की जीत का पर्दा हटा सकते हों तो देखें गांधी की आंखें गीली हैं, पटेल की ऑंखों में खून है, और तिलक, गोखले, लाला लाजपतराय के मुॅंह से चीख निकलने वाली है। हम समझते हैं कि मुस्लिम वोटर को अपने हक में लेने के इस तरीके के बजाय अगर कोई और तरीका अपनाया जाता तो बेहतर होता।”

13 जुलाई 1961 का संपादकीय ‘कांग्रेस और सेक्युलरिज्म दो बातें; मुस्लिम हिन्दू साम्प्रदायिकता और कांग्रेस एक बात” शीर्षक से लिखता है” हिन्दू- मुस्लिम साम्प्रदायिकता के जहर को बढ़ाकर हुकूमत करना अंग्रेज और कांग्रेस दोनों का ही मकसद रहा है। अखबार अन्त में सुस्पष्ट रूप से लिखता है कि “इलेक्शन के मौके पर कांग्रेस और हिन्दू महासभा द्वारा सांप्रदायिकता को प्रश्रय दिया जाना हजार बार घातक है।”

सहकारी युग की नीति निष्पक्ष रही और इसने साफ-सुथरी विचारपूर्ण आलोचना को ही पसन्द किया, ना कि क्षुद्र स्वार्थों से आपूरित ओछे हथकंडों को, जिसका कि पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी चलन हो आया था। कांग्रेसी हो या जनसंघी या कि समाजवादी- सहकारी युग सबका अखबार था क्योंकि सहकारीयुग किसी पद, कुर्सी, स्वार्थ या टिकट के लिए अखबार नहीं चला रहा था । नतीजा यह निकला कि रामपुर और आस पास के जिलों में जुगनुओं के बीच एक चमकती दीपशिखा की तरह सहकारी युग की साफ-सुथरी रोशनी तटस्थ और विद्वत समाज में सहज ही सबको भाने लगी। राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, मानवीय गरिमा और सामाजिक बराबरी सहकारी युग की नीति का प्राण था ।

साहित्यिक रचनाओं के क्रम में रामावतार कश्यप पंकज, महेश राही, कुमारी शकुन्तला सक्सेना (बी० ए०), रूप किशोर मिश्रा साहित्य रत्न, हृदयनारायण अग्रवाल, ओम नारायण अग्रवाल, हरीश (एम० ए०), ब्रजराज पांडेय, विजय कुमार, रणवीर बिहारी सेठ ‘रवि’ एम०ए०, कमला प्रसाद पांडेय, विश्वदेव शर्मा, प्रो० मुकुट बिहारी लाल, रामभरोसे लाल भूषण, प्रोफेसर सोहन लाल गर्ग, रमेश रंजक, डा. देवर्षि सनाढ्य (गोरखपुर विश्वविद्यालय) प्रो० शिवादत्त द्विवेदी, ललित मोहन पालनी नागेश (कानपुर), चन्द्र प्रकाश सक्सेना कुमुद, कन्हैया लाल उपाध्याय, शचीन्द्र बहादुर बोरा, रमेश चन्द्र मधु, भूधर द्विवेदी, ओम प्रकाश शर्मा, सियाराम शरण भ्रान्त, सत्यपाल अरोडा, आ० प्र० माथुर, की कवितायें, कहानियां, नाटक, लेख आदि महत्वपूर्ण रूप से इस वर्ष दर्ज हैं। विशेषकर प्रो. शिवदत्त द्विवेदी, रामावतार कश्यप पंकज, महेश राही और रणवीर बिहारी सेठ ‘रवि’ अपनी कविताओं, कहानियों, नाटकों से वर्ष भर सहकारी युग को सम्पन्न करते रहे। महत्वपूर्ण राजनीतिक स्तम्भ “वाचाल की मीठी बात” संपादक महेन्द्र गुप्त की लेखनी से वर्ष भर खट्टी-मीठी चुटकियॉं लेता रहा।
————————————————————–
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
————————————————————–
नोट : यह समीक्षा लेख सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक अंक दिनांक 6 फरवरी 1988 में प्रकाशित हो चुका है।

243 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
ऐ ज़िन्दगी!
ऐ ज़िन्दगी!
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
नसीहत
नसीहत
Slok maurya "umang"
आकाश दीप - (6 of 25 )
आकाश दीप - (6 of 25 )
Kshma Urmila
रानी मर्दानी
रानी मर्दानी
Dr.Pratibha Prakash
हर  तरफ  बेरोजगारी के  बहुत किस्से  मिले
हर तरफ बेरोजगारी के बहुत किस्से मिले
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
2786. *पूर्णिका*
2786. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
राज्यतिलक तैयारी
राज्यतिलक तैयारी
Neeraj Mishra " नीर "
''बिल्ली के जबड़े से छिछडे छीनना भी कोई कम पराक्रम की बात नही
''बिल्ली के जबड़े से छिछडे छीनना भी कोई कम पराक्रम की बात नही
*प्रणय*
पहचान ही क्या
पहचान ही क्या
Swami Ganganiya
गम इतने दिए जिंदगी ने
गम इतने दिए जिंदगी ने
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
हृदय तूलिका
हृदय तूलिका
Kumud Srivastava
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
Manisha Manjari
!! चहक़ सको तो !!
!! चहक़ सको तो !!
Chunnu Lal Gupta
यूँ तो इस पूरी क़ायनात मे यकीनन माँ जैसा कोई किरदार नहीं हो
यूँ तो इस पूरी क़ायनात मे यकीनन माँ जैसा कोई किरदार नहीं हो
पूर्वार्थ
"जीवन का संघर्ष"
Dr. Kishan tandon kranti
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
Piyush Goel
धीरे धीरे उन यादों को,
धीरे धीरे उन यादों को,
Vivek Pandey
दरख़्त-ए-जिगर में इक आशियाना रक्खा है,
दरख़्त-ए-जिगर में इक आशियाना रक्खा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
शिव शंभू भोला भंडारी !
शिव शंभू भोला भंडारी !
Bodhisatva kastooriya
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
नेताम आर सी
मरने से पहले ख्वाहिश जो पूछे कोई
मरने से पहले ख्वाहिश जो पूछे कोई
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
Atul "Krishn"
*स्वजन जो आज भी रूठे हैं, उनसे मेल हो जाए (मुक्तक)*
*स्वजन जो आज भी रूठे हैं, उनसे मेल हो जाए (मुक्तक)*
Ravi Prakash
पिता की याद।
पिता की याद।
Kuldeep mishra (KD)
सीख
सीख
Sanjay ' शून्य'
इश्क का बाजार
इश्क का बाजार
Suraj Mehra
जब मायके से जाती हैं परदेश बेटियाँ
जब मायके से जाती हैं परदेश बेटियाँ
Dr Archana Gupta
खुद को जानने में और दूसरों को समझने में मेरी खूबसूरत जीवन मे
खुद को जानने में और दूसरों को समझने में मेरी खूबसूरत जीवन मे
Ranjeet kumar patre
ॐ नमः शिवाय…..सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के
ॐ नमः शिवाय…..सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के
Shashi kala vyas
Loading...