Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Dec 2021 · 14 min read

सहकारी युग का 13 वां वर्ष (1971- 72 )

सहकारी युग ,हिंदी साप्ताहिक ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश का 13 वां वर्ष (1971 – 72 ) :एक अध्ययन
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
12 वें वर्ष 1970-71 की फाइल उपलब्ध नहीं है ।
––——————————————————–
“असंतोष का अभाव हमारा सबसे बड़ा शत्रु”- इस शीर्षक से 1971 के 50 पृष्ठीय स्वतंत्रता दिवस विशेषांक के अपने संपादकीय में सहकारी युग ने देश में व्याप्त विषमता ,चारित्रिक पतन ,आदमी की जिंदगी की टूटन के प्रति व्यापक विरोध तथा असंतोष को व्यक्त करने का जन-जन से आह्वान किया । उसने कहा कि “आजादी के बाद पहनाए गए गुलामी के तौख ने हमारे स्वाभिमान ,हमारे स्वदेशाभिमान को पीसकर रख दिया । प्रशासन और राजनीति ने एक दूसरे को गैर-जिम्मेदार बनाने में काफी मदद की है और इस तरह जनसाधारण के हितों पर ,जनसाधारण की प्रगति पर जबरदस्त कुठाराघात हुआ है।”
रामपुर को पिछड़ा जिला घोषित न करने से “रामपुर के साथ अन्याय किया गया है और इसका कारण है रामपुर की नपुंसक राजनीति जिसने रामपुर का हित सोचा ही नहीं ।” (24 अगस्त 1971 संपादकीय ) पत्र ने रामपुर के हितों की जोरदार आवाज उठाई ।
अध्यापक वर्ग के नैतिक चारित्रिक पतन के परिवेशगत कारणों पर टिप्पणी करते हुए पत्र ने लिखा कि “आज के शिक्षक उस शिक्षा विभाग के अंग बन चुके हैं जिसके मंत्री का कोई सिद्धांत नहीं होता, जिसके निदेशक गण धीरू होते हैं तथा जिसके विभाग में हर कागज के आगे बढ़ने पर पैसे का सहारा लगाना पड़ता है ।”शिक्षा के इतिहास का स्मरण करते हुए पत्र गौरव के साथ कहता है कि “चाणक्य ,समर्थ रामदास और गुरु वशिष्ठ ने इस देश को वह रत्न प्रदान किए हैं जिन्होंने इतिहास का निर्माण किया ,बलिदान की परंपराएं कायम रखीं और देशभक्ति के पवित्रतम आदर्श स्थापित किए। गुरु द्वारा किया गया यह निर्माण आज तक गौरव का विषय है किंतु क्या आज के गुरु वर्ग द्वारा किया जाने वाला निर्माण क्या कभी गौरव का विषय माना जा सकता है ?”(संपादकीय 9 सितंबर 1971)
गाँधी के बाद गाँधीवाद की हत्या का क्रम अनवरत जारी है ,ऐसा मानना है सहकारी युग का । अपने विचार को अभिव्यक्त करते हुए पत्र लिखता है- “गांधीजी के पार्थिव शरीर को गोली मारी नाथूराम गोडसे ने ,तो उनकी कल्पना के मानव को छलनी कर डाला है गांधी की जय बोलने वालों ने । इसका प्रमाण है गांधी के भारत की वह जनता जिसे राजनीति और प्रशासन के संयुक्त षड्यंत्र ने पशुवत जीवन व्यतीत करने को विवश कर दिया है । आज आवश्यकता है उन तथाकथित भारतीय नेताओं को चुन-चुन कर गद्दी से नीचे फेंकने की जो गांधी टोपी पहनकर गांधी के सिद्धांतों पर गोलियां बरसा रहे हैं ।”(संपादकीय 3 अक्टूबर 1971 )
वयोवृद्ध श्री राधे श्याम वकील के स्वर्गवास पर सहकारी युग ने स्मरण किया कि “वह रामपुर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे । वह भी उस समय में जब संघर्ष का युग था ।” (3 अक्टूबर 1971)
10 अक्टूबर 1971 के अंक में संपादकीय टिप्पणी के अंतर्गत पत्र पुनः समाज को याद दिलाता है कि “श्री राधेश्याम आजादी के पूर्व कांग्रेस में सम्मिलित हुए और कांग्रेस के सिद्धांतों के लिए संघर्ष करते रहे । आजादी के बाद उन्होंने उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इकट्ठा किया जिनकी कांग्रेस के उसूलों में आस्था थी ,जिन्होंने आजादी के पूर्व कांग्रेश का वरण किया, संघर्ष को सीने से लगाया था । किंतु आजादी के बाद जो तथ्य सामने आए वह जनता जनतंत्र और कांग्रेस के लिए दुर्भाग्य का विषय है । उन पर गर्व करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । उनके स्मरण से गोडसे की दुर्गंध आती है ।”
रामपुर के कांग्रेसी नेताओं पर पत्र की संपादकीय टिप्पणी है कि इनमें से अधिकांश “के राजनीतिक जीवन का श्रीगणेश संघ और महासभा से हुआ और इन्हें राजनीतिक मंच पर लाने वाले कांग्रेस के उद्देश्य न होकर कोठियों में रहने वाले स्वर्गीय नवाब रामपुर थे ।”(10 अक्टूबर 1971 )
पत्र बहुत आंदोलित हो उठा जब रामपुर के एक उर्दू दैनिक ने विधवा श्रीमती ललिता शास्त्री को अपनी तथाकथित अराष्ट्रीय मनोवृति के तहत उन शब्दों से संबोधित किया जिसका अर्थ बहुत गिरा हुआ होता है । सहकारी युग यह पढ़कर रो पड़ा था क्योंकि वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पवित्रता और देवत्व की प्रत्यक्ष प्रतीक ललिता शास्त्री जी के प्रति ऐसे शब्दों का भारत में कोई उपयोग कर सकता है ।(संपादकीय 10 अक्टूबर 1971)
स्वर्गीय श्री कृष्ण शरण आर्य की सार्वजनिक और राष्ट्रीय सेवाओं पर 10 अक्टूबर अंक में ही लगभग सवा पेज का शोधपूर्ण लेख सहकारी युग ने प्रकाशित किया जो श्री महेंद्र की प्रखर लेखनी का प्रमाण प्रस्तुत करता है । वस्तुतः रामपुर के लोक जीवन की श्रेष्ठ प्रवृत्तियों को उजागर करने में पत्र को सात्विक आनंद सदा मिलता रहा । श्री आर्य रामपुर की श्रेष्ठतम विभूतियों में निश्चित ही थे।
15 अक्टूबर 1971 को सहकारी युग ने प्रथम पृष्ठ पर सूचना दी कि “टैगोर शिशु निकेतन में सुंदरलाल विद्यालय के प्रबंधक श्री राम प्रकाश सर्राफ ने एक अध्ययन-पुस्तकालय की योजना कार्यान्वित की है जिसके अंतर्गत स्नातकोत्तर कक्षाओं के छात्रों को उत्कृष्ट पुस्तकों के अध्ययन का अवसर मिल सकेगा । उक्त अध्ययन केंद्र दीपावली अवकाश के बाद छात्रों के लिए खुल जाने की संभावना है ।”
रामपुर के भविष्य के बारे में जोरदार सवाल उठाते हुए सहकारी युग ने साफ-साफ कहा कि सच्चाई यह है कि “रामपुर के प्रति केंद्र और राज्य की सरकारें सौतेली मां का व्यवहार किए जा रही हैं और रामपुर की जनता धीरे-धीरे या तो बेकारी और बेरोजगारी का शिकार होकर कुछ अवैध धंधे अपना रही है या जिनके पास कला कौशल है वह रामपुर का परित्याग कर रहे हैं और हमारे राजनीतिक नेता गण खामोश हैं और इस तरह खामोश हैं मानो वह नेता हैं उन पार्टियों के जो मुर्दा हैं।”( 22 अक्टूबर 1971 संपादकीय : रामपुर के अनेकानेक प्रश्न और राजनीति )
पत्रकारिता का गिरता स्तर देखकर सहकारी युग वेदना पूर्वक लिखता है कि “हमारे भारतीय संविधान की उदारता देखिए कि अगर एक गधे की खसलत रखने वाला मानव भी समाचार पत्र निकालने के लिए डिक्लेरेशन प्रस्तुत करता है तो वह थोड़े समय में ही संपादक हो जाता है ,पत्रकार हो जाता है और फिर इस पवित्र व्यवसाय की आड़ में जो घृणित कार्य वह करता है उससे भारतीय पत्रकारिता कलंकित होती है।” सुस्पष्ट सुझाव देते हुए सहकारी युग आगे लिखता है “यदि सूचना विभाग राज्य से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की भाषा, स्तर और उनके मंतव्यों पर दृष्टि रखने के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना कर दे तो कदाचित अराष्ट्रीय और असामाजिक तत्व पत्रकारों के रूप में हमारे सामने न आएँ। (10 नवंबर 1971)
आजादी के बाद “खद्दर पहन-पहन कर गुंडे ,देशद्रोही ,समाज-दुश्मन शासक दल के साथ मिलने लगे और इससे भी भयंकर दुर्भाग्य है कि प्रशासन के घुटने इन देशद्रोहियों के समक्ष टिकने लगे ।”-यह तीखी संपादककीय टिप्पणी की बानगी है सहकारी युग के 27 नवंबर 1971 अंक की।
“इंदिरा गांधी के नेतृत्व में याहिया के नापाक इरादों के अंत की बेला आ पहुँची” यह शीर्षक है उस जलते संपादकीय का जो 1971 के पाकिस्तानी आक्रमण के दौर में जगते राष्ट्र के सजग प्रहरी सहकारी युग ने कलमबद्ध किया था । (7 दिसंबर 1971 ) यह वही समय था जब 4 दिसंबर से सारे रामपुर नगर में पूर्ण ब्लैक-आउट होने लगा ,रामपुर की शिक्षा संस्थाओं के छात्रों ने सड़कों पर जुलूस बनाकर आक्रमण के खिलाफ जन जागृति की ,नवाबजादा जुल्फिकार अली खान ने ओजस्वी वक्तव्य दिया कि पाकिस्तान का आक्रमण कुरान और इस्लाम का अपमान । यह तमाम खबरें सहकारी युग के मुख पृष्ठ का ज्वलंत विषय बनीं।
रामपुर की जनता ने उदारतापूर्वक राष्ट्र रक्षा कोष में सहयोग किया । जिलाधिकारी द्वारा बुलाई नागरिकों की सभा में सभा-स्थल पर ही ” सुंदर लाल इंटर कॉलेज और टैगोर शिशु निकेतन के प्रबंधक श्री राम प्रकाश सर्राफ ने दोनों विद्यालयों की ओर से जवानों के लिए एक हजार पाँच सौ रुपये देने की घोषणा की।” ( 16 दिसंबर 1971) दूसरी ओर रोटरी के इनरव्हील क्लब द्वारा 3200 रुपए रक्षा कोष में पृथक रूप से भेजे गए।
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के लौह संकल्प बल पर मुग्ध होते हुए सहकारी युग ने बांग्लादेश की रचनाकार और पाकिस्तान से विजयश्री अर्जित करने वाली इस महान महिला को “माँ दुर्गा और रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारण कर” लेने वाली कोटि में प्रणम्य स्थान दिया । उसने लिखा कि “हिंदुस्तान का एक-एक बच्चा अपनी माँ के इशारों पर खून बहाने को तैयार खड़ा है ।”(संपादकीय 16 दिसंबर 1971 )
स्वर्गीय श्री कृष्ण शरण आर्य की तेजस्वी राजनीति पर आधे पृष्ठ का श्रद्धापूर्ण स्मरण करते हुए सहकारी युग ने इस्पात को शब्दों में ढालकर आकार देते हुए लिखा कि “श्री आर्य से रुष्ट थे रामपुर के वह नेतागण जिन्हें नवाब रामपुर ने खद्दर पहनाया था सिर्फ इसलिए कि दोहरी दासता की बेड़ियों से जकड़ा हुआ रामपुर आजादी के बाद कहीं सर न उठा ले ,वर्षानुवर्षों तक को घुटन और उमस से भरे कफस से निकलने के बाद कहीं वह चहचहाने न लगे ।लेकिन श्री आर्य अपवाद साबित हुए । उन्होंने रामपुर को एक नया प्रकाश और नया रास्ता देने के लिए संघर्ष शुरू किया ।”(16 दिसंबर 1971)
सहकारी युग फोरम प्रमाण है सहकारी युग की जुझारू और समाज उन्मुख रचना धर्मी प्रवृत्ति का । आंखों में आंखें डाल कर जनता से सीधी अपनी बात कहना इस फोरम ने शुरू की। लिखने का काम तो आग में तपते हुए चल ही रहा था। अर्थात – “25 दिसंबर की सायं काल सहकारी युग फोरम की ओर से टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में रामपुर के प्रबुद्ध , शिक्षित और अराजनीतिक समाज की सभा ने भारत-पाक युद्ध में प्राणार्पण करने वाले वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की । सभा की अध्यक्षता रामपुर के जिलाधीश श्री राजेंद्र कुमार ने की।” सभा में राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ मायाराम ,राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ टी.एन. श्रीवास्तव और बैंक कर्मचारी संघ के श्री कृष्ण चंद्र कपूर ने विद्वत्तापूर्ण विचार रखे। यह सब प्रवृतियां श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त की वैचारिक ,जनवादी सक्रियता को ही प्रतिबिंबित कर रही थीं।( 26 दिसंबर 1971)
टैगोर पुस्तकालय– इस शीर्षक से 26 दिसंबर 1971 अंक में ही उल्लेख है कि ” 25 दिसंबर की सायंकाल टैगोर शिशु निकेतन में स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए निर्मित पुस्तकालय को जिन अनेक बुद्धिजीवियों ने देखा और सराहा उनमें रजा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ मायाराम तथा कई अन्य प्राध्यापक भी थे । टैगोर विद्यालय के प्रबंधक श्री राम प्रकाश सर्राफ को उक्त निःस्वार्थपूर्ण सेवा के लिए अनेकानेक बधाइयाँ दी गईं।”
अपनी प्राणवान लेखनी से सहकारी युग ने राष्ट्र धर्म के सतत निर्वाह का आह्वान करते हुए जनता से निवेदन किया कि ” पाकिस्तानी आक्रमण के बाद भारतवर्ष की एकता जिस सीमा तक सुदृढ़ हुई है उसे कायम रखना उतना ही आवश्यक है जितना आक्रमणकारी को परास्त करना।” सहकारी युग ने लिखा कि “यद्यपि यह सत्य है कि देश का प्रत्येक राजनीतिक दल देश की सुरक्षा के सामने अन्य प्रश्नों और मतभेदों को भुलाने में किंचित भी संकोच नहीं करते किंतु प्रश्न यह है कि क्या युद्ध की विभीषिका के पश्चात की स्थिति से निपटने के लिए हमारा साहस ,हमारा शौर्य ,हमारी एकता और हमारा उत्साह यथावत स्थिर रहेगा।”( संपादकीय 26 दिसंबर 1971)
स्थानीय समाचार पत्र की आलोचना कठिन हो जाती है मगर सहकारी युग ने रामपुर के एक उर्दू दैनिक की भारत-पाक युद्ध के दौरान भूमिका पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया ।(8 जनवरी 1972 तथा 17 जनवरी 1972)
सांस्कृतिक समाचारों में 17 जनवरी 1972 अंक की ही खबर है कि “13 जनवरी को टैगोर पुस्तकालय में नेपाली महंत श्री नारायण प्रसाद उप्रेती ने कबीर दास जी के जीवन पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम का संचालन श्री कृष्ण गोपाल और सभा की अध्यक्षता प्रोफेसर टी.एन. सक्सेना ने की।”
20 पृष्ठीय गणतंत्र दिवस विशेषांक का शब्द-शब्द बलिदान और वीरगाथा से दहकता हुआ है । पाकिस्तान का जन्मदाता द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत सहकारी युग ने नकार दिया और इंकार कर दिया मजहब के नाम पर इंसानियत के बँटने को। पत्र बहुत भावुक हो गया इतिहास के खूनी घटनाक्रम पर दृष्टिपात करते हुए । उसने विशेषांक के आवरण पृष्ठ पर ही पाकिस्तानी तानाशाहों से सवाल किया कि “मजहब के नाम पर सन सैंतालीस में तुमने जिस कदर खून बहाया क्या बता सकते हो कि उस खून की लाली का मजहब क्या है ? मजहब की ठेकेदारी का ताज अपने सिर पर रखकर हाल ही में तुमने तीस लाख बंगाली मुसलमानों का जिस बेदर्दी से कत्ल किया ,क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे इस वहशियाना अमल का क्या मजहब है ? ” धर्म की राजनीति का वैचारिक विश्लेषण करते हुए सहकारी युग में निष्कर्ष दिया कि ” हुकूमत की भूख ने तुम्हें दरिंदेपन पर उतारू किया और तुमने एक मुल्क के दो मुल्क करा दिए और हकूमत कि वही भूख जब पूरे जनून में बदल गई तो तुमने अपने ही मजहब वालों को रोक दिया । ” मगर नए भविष्य की नई रोशनी की उम्मीद करते हुए सहकारी युग ने आशावादी स्वर में यह भी लिखा कि “अब उस मजहब की कद्र होगी ,जिसमे इंसानियत का खून नहीं बहेगा ,जिसमें नफरत के अंधेरे की जगह मोहब्बत की रोशनी को ऊंचा उठाया जाएगा ।”
भारतीय राजनीति की विडंबनाओं पर दृष्टिपात करते हुए सहकारी युग की आंखें सजल हो जाती हैं। वह कहता है -“जो राजनीतिज्ञ सत्ताधारी दल से संबद्ध हैं, उनकी पृष्ठभूमि में झांकने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि उनमें से अधिकांश आजादी से पूर्व आजादी के लिए बलिदान देने वालों की पंक्ति में खड़े होने के बजाय आजादी के परवानों के विरुद्ध षड्यंत्र की रचना करते थे और स्वतंत्रता के पश्चात वही देशद्रोही और असामाजिक तत्व भी भारी संख्या में सत्ताधारी दल मे घुसे। इन तत्वों ने गांधी और गोखले के सिद्धांतों और आदर्शों की नाथूराम गोडसे की अपेक्षा अधिक आतताई ढंग से गोलियां दागीं लेकिन खद्दर पहनकर।” (संपादकीय गणतंत्र दिवस विशेषांक 1972)
आजादी के बाद शिक्षा का स्तर गिरा है। कारण की समीक्षा करते हुए सहकारी युग कहता है कि “छात्रों और अध्यापकों दोनों का ही स्तर गिरा है और उसका मूल कारण है भारत के राजनीतिक नेतागण और राजनीतिक दल जो विद्यालयों में छात्रों के प्रवेश ,जन सेवा आयोग द्वारा अध्यापकों के चयन और नेताओं की संतुष्टि के लिए समय-असमय अध्यापकों के स्थानांतरण के मामलों में सिफारिश और हस्तक्षेप को अपना अधिकार मानते हैं ।” (संपादकीय 6 फरवरी 1972)
जनतंत्र के जागरूक प्रहरी के रूप में सहकारी युग फोरम ने रामपुर की जनता की उपेक्षा पर जोरदार सवाल उठाया और 25 फरवरी को इस फोरम का 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल डॉ. वी. गोपाला रेड्डी से मिला और उन्हें गुलामी के दौर में दोहरी बेड़ियों में जकड़ी रामपुर की जनता की स्वातंत्र्योत्तर भारत में भी चरम उपेक्षा, राजनीतिक अभिशाप ,नेतृत्व की शक्तिहीनता ,सांप्रदायिक तत्वों को सरकारी पोषण और नगरपालिका में दुर्व्यवस्था पर विचार करने के लिए राज्यपाल को ज्ञापन दिया।( 27 फरवरी 1972 )
सहकारी युग ने रूहेलखंड अंचल में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन का सक्रिय नेतृत्व किया । उसने जनता की इस भावना को खुलकर छापा कि “सांप्रदायिक एकता , राष्ट्रीयता और सभ्य एवं स्वस्थ पत्रकारिता को अपमानित होने से” बचाने का प्रयत्न पूरी ताकत से करना चाहिए । (9 मार्च 1972)
पत्रकारिता के नाम पर पनपती सड़ांध के प्रदूषण से सहकारी युग ने सदा संघर्ष किया । उसने जोरदार आवाज उठाई कि उत्तर प्रदेश में जगह-जगह ऐसे तत्व उत्पन्न हो रहे हैं जो पत्रकारिता के नाम पर कलंक माने जाने चाहिए ।अतः ऐसी व्यवस्था हो जिससे पत्रकारिता का पवित्र व्यवसाय राष्ट्र और समाज के लिए घातक सिद्ध न हो और जहां-जहां राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी तत्व इस क्षेत्र में प्रविष्ट कर गए हैं उन्हें निकाल फेंका जाए । इस कार्य में सरकार के साथ-साथ स्थान स्थान पर सम्मानित पत्रकारों को कुछ अधिक जागरूक और सक्रिय बनना होगा । ” (संपादकीय 18 मार्च 1972 )
रामपुर में शिक्षा क्षेत्र के विस्तार के प्रयास को सहकारी युग में प्राय: प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से स्थान दिया है।प्रमाण है 6अप्रैल 1972 के अंक के निम्न अंश :-
शिक्षोन्नति की दिशा में सराहनीय प्रयास : श्री राम प्रकाश सर्राफ द्वारा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय की स्थापना : रामपुर । स्थानीय व्यवसाई श्री राम प्रकाश सर्राफ ने नगर के मध्य लगभग एक लाख रुपया लगा कर बी.ए. एवं एम. ए. के छात्रों के लिए एक अभूतपूर्व पुस्तकालय योजना का श्रीगणेश किया है । उक्त प्रयास जिले और कदाचित संपूर्ण रूहेलखंड विभाग में अभूतपूर्व है । उक्त पुस्तकालय में शोध कार्यों के निमित्त भी छात्र गण आया करते हैं तथा स्नातकोत्तर विद्यालय के अध्यापक निशुल्क मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। श्री राम प्रकाश सर्राफ का मत है कि बड़ी-बड़ी शिक्षा संस्थाओं के छात्र श्रेष्ठ पुस्तकों के अभाव में वांछित प्रगति नहीं कर पाते हैं ,अतः रामपुर के छात्रों का स्तर उन्नत करने के लिए यह प्रयास किया गया है । इस पुस्तकालय से लाभान्वित होने वाले छात्रों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा । श्री राम प्रकाश ने बताया है कि प्रारंभ में लगभग 25 सहस्त्र की धनराशि उक्त कार्य में लगाई जा चुकी है। मुख्य राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में प्रतिदिन लगभग एक सौ छात्र अध्ययनार्थ आते हैं और उसकी व्यवस्था टैगोर शिशु निकेतन के प्रधानाचार्य श्री कृष्ण गोपाल सरोज के द्वारा संपन्न होती है । श्री राम प्रकाश के इस कार्य की सर्वत्र सराहना हो रही है।”
16 अप्रैल 1972 के अंक में भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की विधवा पत्नी के लिए अपमानजनक शब्द कहे जाने के सिलसिले में सहकारी युग के संपादक की गवाही अंकित है। उपरोक्त गवाही के अंतर्गत ही संपादक महेंद्र गुप्त ने न्यायालय के समक्ष 16 नवंबर 1970 के सहकारी युग के उस संपादकीय को भी पढ़ा जिसमें “रामपुर की शान में फर्क न आने पाए” शीर्षक से लेख लिखा गया था । (16 अप्रैल 1972 )
रामपुर नुमाइश के मुशायरे की एक पृष्ठ की लंबी रिपोर्ट सहकारी युग में छपी और इस रिपोर्ट का शब्द-शब्द साहित्यकता के रस से सराबोर करता पाठक को उर्दू-हिंदी के एकीकरण भाव से नहलाता चला गया। प्रस्तावना के कुछ अंश देखिए:- “शायरी की रात का काफी अरसे से इंतजार किया जाता है क्योंकि उर्दू शायरों ने जिस अंदाज को अपनाया है उसका सीधा ताल्लुक इंसान की आम जिंदगी से बहुत ज्यादा है ।लिहाजा यह कहना बहुत मुनासिब होगा कि उर्दू के अच्छे शायर हमारी प्यास के मुताबिक मन की तह तक पहुंचने वाला साहित्य देते हैं ।यही सबब है कि मुशायरे को हजारों लोग अपनी प्यास बुझाने का एक बहुत बेहतरीन मौका समझते हैं।”( 14 मई 1972 )
नेहरू की महानता की आड़ में क्षुद्र तत्व कांग्रेस में कैसे पनपे, इस पर प्रकाश डालते हुए पत्र लिखता है :- “उदारमना श्री नेहरू ने कांग्रेस में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनाया क्योंकि उनमें छिद्र देख सकने की आदत नहीं थी । इतना ही नहीं तो जब अवांछनीय तत्वों के पैर पसारने और खद्दर पहनकर असामाजिक कार्य करने के समाचार उन्हें मिलते थे तो वह उन्हें अपना ही एक अंग समझ कर क्षमा कर दिया करते थे । विशाल हृदय नेता को क्षुद्र और कुटिलता पूर्ण हृदयों के कारनामों को समझने में बहुत देर लगी और उनकी उस विशालता के साए में अवांछनीय समाज फलने – फूलने लगा ।”(संपादकीय 27 मई 1972 )
उत्तर प्रदेश पुलिस आयोग की रिपोर्ट से सहकारी युग की सहमति रही कि राजनीतिक नेताओं की गैर कानूनी इच्छाओं और प्रभावों के कारण पुलिस न्याय पथ से विचलित हुई है ।सहकारी युग का यह भी मानना रहा है कि “स्वतंत्रता के बाद देश के साथ गद्दारी करने वाले लोग भी देशभक्तों का परिधान पहनकर कांग्रेस में सम्मिलित हुए और उन्होंने देश की तबाही को अपना मजहब बना लिया ।”अपनी बात सभी दलों पर लागू करते हुए सरकारी युग ने मत व्यक्त किया कि “आजादी से पूर्व देशभक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने वाले लोग जब राजनीति में आए तो प्रशासन को उनके समक्ष आदर व्यक्त करने में संकोच करना चाहिए था क्योंकि वह वेष बदले हुए गद्दार और मौका परस्त लोग हैं। ( संपादकीय 11 जून 1972 )
आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े सवाल पर प्रायः उठाए हैं सहकारी युग ने। उदाहरणार्थ :-
“रामपुर में अब चीनी सिर्फ खुले बाजार में है जिसकी कीमत साढ़े तीन रुपया प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है । सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों को जुलाई मास में चीनी का एक भी दाना नहीं दिया गया।” सहकारी युग ने रामपुर की राजनीतिक पार्टियों का आह्वान किया कि वह ऐसे जनहित के मामलों में नपुंसकता का रोल अदा करने की वृत्ति का परित्याग करें ।(संपादकीय 18 जुलाई 1972 )
सहकारी युग ने बार-बार इस सत्य को दोहराया कि “आजादी के बाद असामाजिक और अपराधी वृत्ति के लोग राजनीति में प्रविष्ट हो गए और उन्होंने प्रशासन को अपने लाभ के लिए इस हद तक इस्तेमाल किया कि प्रशासन को सरकार का एक अंग कहने में कठिनाई होने लगी ।”(संपादकीय 29 जुलाई 1972)
वर्ष 1971 – 72 में वैचारिक साहित्यिक लेखों ,कविताओं ,कहानियों आदि से जिन रचनाकारों ने सहकारी युग के प्रष्ठों को विशेष रुप से ज्योतित किया वे इस प्रकार रहे : कुमार विजयी, डॉक्टर ऋषि कुमार चतुर्वेदी ,उमाकांत दीप (मेरठ), डॉक्टर लखन लाल सिंह ,महेश राही, रामावतार कश्यप पंकज ,ईश्वर शरण सिंहल, शैलेंद्र शैल ,वेद अग्रवाल (मेरठ), रणजीत कुमार शर्मा ,नरेश कुमार ,विनोद गुप्ता ,निर्भय हाथरसी ,अशोक कुमार सिंघल, एस.सी. मिश्र ,आनंद मिश्र शरद, भगवान स्वरूप सक्सेना मुसाफिर ,डॉक्टर पुत्तू लाल शुक्ल ,राम वल्लभ अग्रवाल ,लक्ष्मी दत्त पांडे ,शिवप्रसाद मिश्र एडवोकेट (सीतापुर) और कँवल भारती।
पत्र का यह वर्ष राजनीतिक-वैचारिक प्रखरता से जगमगाता रहा और अपने धारदार चिंतन से साहित्यिक, शैक्षिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जागृति उत्पन्न कर संपूर्ण जनता को दिशा बोध प्रदान करता रहा । इसने लोकमानस को स्वस्थ पत्रकारिता ,सहिष्णुता की प्रवृत्ति, धर्मनिरपेक्षता ,राष्ट्रीयता और देश के प्रति स्वाभिमान की शिक्षा से संप्रक्त किया। जन-जन में राष्ट्र के प्रति बलिदानी भावना बादल बन – बनकर उमड़ी। यही युद्ध काल में लेखनी का भी आदर्श रहता है। पत्रकारिता एक तपस्या है । राष्ट्रीय जीवन को नवजागरण और नित्य उत्साह में भरे रहकर राष्ट्र देव के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित करने की अक्षय प्रेरणा ही तो पत्रकारिता का चरम ध्येय भी होना चाहिए । सहकारी युग की राजनीति राष्ट्र धर्म की आदर्शवादिता से आपूरित थी। उसने देश को जगाया ,जनता को उत्साह दिलाया ,युद्ध काल का कर्तव्य बताया ,जीवन का धर्म सिखाया ,धर्म का मर्म दिखाया और लेखनी को मिशन मानकर अपनाया।

474 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
किसी को जिंदगी लिखने में स्याही ना लगी
किसी को जिंदगी लिखने में स्याही ना लगी
कवि दीपक बवेजा
पुष्प
पुष्प
Dinesh Kumar Gangwar
कभी मैं सोचता था कि एक अच्छा इंसान बनना चाहिए तो दुनिया भी अ
कभी मैं सोचता था कि एक अच्छा इंसान बनना चाहिए तो दुनिया भी अ
Jitendra kumar
नफसा नफसी का ये आलम है अभी से
नफसा नफसी का ये आलम है अभी से
shabina. Naaz
— मैं सैनिक हूँ —
— मैं सैनिक हूँ —
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
देखिए
देखिए "औरत चाहना" और "औरत को चाहना"
शेखर सिंह
सुंदरता विचारों व चरित्र में होनी चाहिए,
सुंदरता विचारों व चरित्र में होनी चाहिए,
Ranjeet kumar patre
- कवित्त मन मोरा
- कवित्त मन मोरा
Seema gupta,Alwar
मौत के डर से सहमी-सहमी
मौत के डर से सहमी-सहमी
VINOD CHAUHAN
One day you will realized that happiness was never about fin
One day you will realized that happiness was never about fin
पूर्वार्थ
वैवाहिक चादर!
वैवाहिक चादर!
कविता झा ‘गीत’
काँच और पत्थर
काँच और पत्थर
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
2689.*पूर्णिका*
2689.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हिम्मत कभी न हारिए
हिम्मत कभी न हारिए
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
आत्मबल
आत्मबल
Punam Pande
नैन
नैन
TARAN VERMA
कब हमको ये मालूम है,कब तुमको ये अंदाज़ा है ।
कब हमको ये मालूम है,कब तुमको ये अंदाज़ा है ।
Phool gufran
धधक रही हृदय में ज्वाला --
धधक रही हृदय में ज्वाला --
Seema Garg
"अपेक्षा"
Yogendra Chaturwedi
अजब तमाशा जिंदगी,
अजब तमाशा जिंदगी,
sushil sarna
बुदबुदा कर तो देखो
बुदबुदा कर तो देखो
Mahender Singh
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
*जागा भारत चल पड़ा, स्वाभिमान की ओर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
लक्ष्मी माता की कृपा पाने के लिए उनके वाहन का पूजन आवश्यक है
लक्ष्मी माता की कृपा पाने के लिए उनके वाहन का पूजन आवश्यक है
*प्रणय प्रभात*
*शीतल शोभन है नदिया की धारा*
*शीतल शोभन है नदिया की धारा*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
"रहमतों के भरोसे"
Dr. Kishan tandon kranti
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
Manoj Mahato
लू गर्मी में चलना, आफ़त लगता है।
लू गर्मी में चलना, आफ़त लगता है।
सत्य कुमार प्रेमी
दीपावली
दीपावली
surenderpal vaidya
मुक्तक-विन्यास में एक तेवरी
मुक्तक-विन्यास में एक तेवरी
कवि रमेशराज
हमेशा फूल दोस्ती
हमेशा फूल दोस्ती
Shweta Soni
Loading...