*ससुराला : ( काव्य ) वसंत जमशेदपुरी*
पुस्तक समीक्षा
ससुराला : रचयिता ,वसंत जमशेदपुरी सीमा वस्त्रालय ,राजा मार्केट ,मानगो बाजार, जमशेदपुर ,झारखंड
मोबाइल 93348 05484 प्रकाशक :श्वेतवर्ण प्रकाशन ,नई दिल्ली
मूल्य ₹150
प्रथम संस्करण : 2021
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वसंत जमशेदपुरी जी के मुक्तक संग्रह ससुराला को देखते ही मन प्रसन्न हो गया। काफी समय पहले पुस्तक की पांडुलिपि पढ़ी थी । कवर इतना आकर्षक बन गया है कि हाथ में किताब आने के बाद शायद ही कोई व्यक्ति पूरी पढ़े बिना रह पाए । होली के अवसर पर ससुराला के हास्य-रस का प्रभाव “सोने पर सुहागा” के समान द्विगुणित हो गया है । पुस्तक की भूमिका मेहा मिश्रा जमशेदपुर (झारखंड) तथा रवि प्रकाश रामपुर (उत्तर प्रदेश) द्वारा लिखी गई हैं। अपनी बात शीर्षक से रचयिता वसंत जमशेदपुरी जी ने जमशेदपुर की समृद्ध काव्य-परंपरा का स्मरण किया है तथा स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला की परंपरा में जमशेदपुर के ही स्वर्गीय मनोहर लाल गोयल जी द्वारा लिखित गौशाला तथा अशोक खंडेलवाल जी द्वारा लिखित पाठशाला का भावपूर्वक स्मरण किया है । पुस्तक के कवर पर सर्व श्री अशोक कुमार रक्ताले ,उज्जैन (मध्य प्रदेश), पंडित अशोक नागर ,शाजापुर (मध्य प्रदेश) तथा सुविख्यात कवि डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया की उत्साहवर्धक शुभकामनाएँ अंकित हैं ।
मेरे द्वारा लिखित भूमिका इस प्रकार है:-
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भूमिका
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ससुराला : माधुर्य से भरी एक अद्भुत कृति
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ससुराला के छंदों में अद्भुत माधुर्य है । भला हो भी क्यों न ? यह तो विषय ही मधुर-रस से भरा हुआ है और फिर वसंत जमशेदपुरी जी की सिद्धहस्त कलम जब इस विषय पर चली तो पाठकों को आनंद से सराबोर करती चली गई ।
गृहस्थ जीवन का आरंभ ससुराल से ही होता है । वैसे तो ससुराल स्त्रियों की भी होती है लेकिन पुरुषों को ससुराल का उत्साहवर्धक पक्ष बहुत लुभाता है । उनके लिए यह एक प्रकार से धरती पर लघु-स्वर्ग है । ससुराल जाने की कल्पना-मात्र से पुरुष का ह्रदय बाग-बाग हो उठता है । विवाह से पूर्व न जाने कितने नवयुवक ससुराल में जाकर पत्नी से मिले और उस आनंद की पुनरावृत्ति दोबारा नहीं हुई।
विवाह के पश्चात भी ससुराल खातिरदारी की दृष्टि से एक बहुत बड़ा आकर्षण-केंद्र रहती है। भाँति-भाँति के पकवान तथा साली-सलहज-सास द्वारा प्रेमपूर्वक ससुराल में व्यक्ति की खातिरदारी उसे अभिभूत कर देती है । सब प्रसंगों को जिस प्रकार से प्रवाह पूर्वक छंदों में कविवर वसंत जमशेदपुरी जी ने उकेरा है ,वह अपनी अलग ही छटा बिखेर रहे हैं। लड्डू ,पेड़े और हलवा लिए हुए सास, सलहज और साली की खातिरदारी का वर्णन करता यह छंद भला कोई कैसे भूल सकता है ?
लड्डू,पेड़े,घेवर,खुरमा,
हलवा होगा घी वाला |
तनिक लजाती सकुचाती सी,
आएगी साली बाला |
सरहज हँस-हँस करे ठिठोली,
जीवन धन्य हुआ जानो,
देर नहीं कर पछताएगा,
गया नहीं जो ससुराला |
केसरिया ठंडाई ,गुझिया और दही-बड़ों से ससुराल में खातिर नहीं होगी तो भला और कहाँ होगी ? इस खातिरदारी को पढ़कर सभी को अपनी-अपनी ससुराल अवश्य याद आ जाएगी। इस स्मरण के लिए भी कवि बधाई का पात्र है।
अगवानी में साला आया,
द्वार खड़ी साली बाला |
सास-ससुर आशीष दे रहे,
बहा स्नेह का परनाला |
केसरिया ठंडाई,गुझिया,
दही बड़े के क्या कहने,
कर मनुहार खिलाती सरहज,
जुग-जुग जीए ससुराला |
संसार में सब कुछ नश्वर और नाशवान हुआ करता है। केवल ससुराल ही है जो अंत तक व्यक्ति की खातिरदारी करती रहेगी । देखा जाए तो जो बात सबके होठों पर विद्यमान रहती है उसी को कवि ने हँसते-हँसते काव्य-रूप में प्रस्तुत कर दिया है।
एक प्रकार से यह सब की कहानी है और सचमुच बहुत सुंदर कहानी है । भाषा सरल है । भाव स्पष्ट हैं । सर्वत्र शालीनता का प्रयोग कवि की श्रेष्ठता को दर्शा रहा है । तुकांत का प्रयोग सावधानी पूर्वक किया गया है । तुकांत में ही समानता को छोड़कर बच्चन जी की मधुशाला से यह सब प्रकार से अलग है। पुस्तक उन सब नवयुवकों को जिनका अभी तक विवाह नहीं हुआ है विवाह करने के लिए प्रेरित करेगी। जिनका विवाह हो चुका है उन्हें ससुराल के बार-बार चक्कर लगाने के लिए उत्साहित करेगी तथा ससुराल पक्ष के सभी व्यक्तियों को दामाद जी की खातिरदारी के तौर तरीकों से भी परिचित कराएगी । इस तरह नवविवाहित युवकों का ससुराल के साथ अच्छा संबंध स्थापित करने में यह पुस्तक मददगार साबित होगी।
अग-जग नश्वर मधुघट नश्वर,
नश्वर है साकीबाला |
हाला-प्याला सब नश्वर हैं,
नश्वर है पीने वाला |
कौन यहाँ रहने आया है,
कौन सदा रह पाएगा,
क्षण-भंगुर इस जग में फिर भी,
सदा रहेगी ससुराला |
पुस्तक की विशेषता केवल मनोरंजन नहीं है । “ससुराल” शब्द के साथ अनेक बार वर-पक्ष के लोगों की लोभी प्रवृत्ति भी सामने आती है । दहेज के रूप में यह कुरीति भारत में हजारों- लाखों घरों में बेबसी और दुख के आंसुओं को उत्पन्न कर चुकी है। समाज को श्रेष्ठ जीवन मूल्यों के आधार पर रचने की लालसा ही किसी कवि को विचारक का दर्जा देती है । कवि वसंत जमशेदपुरी जी ने दहेज के विरुद्ध अपनी लेखनी से आवाज उठाई । उनके एक छंद में लड़की उन लोगों के साथ रिश्ता करने से इंकार कर देती है जो दहेज की बात करते हैं और शादी के साथ रुपयों के लेन-देन को ज्यादा महत्व देते हैं । लड़कियों का यह तेवर नए जमाने की दस्तक दे रहा है । जमशेदपुरी जी ने इस दृष्टि से अपनी कविताओं को समाज सुधार के उद्देश्य से भी तैयार किया है इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
पुत्र हेतु जब गया देखने,
पिता एक सुंदर बाला |
पढ़े-लिखे सब लोग वहाँ थे,
घर था संस्कारों वाला |
बात चली जब लेन-देन की,
कन्या ने इनकार किया,
दिखलाया रस्ता बाहर का
ठुकराई वह ससुराला |
अंत में मैं श्री वसंत जमशेदपुरी को उनकी सरल ,सरस और विचार पूर्ण कविताओं के लिए हृदय से बधाई देता हूँ ।आशा है यह रचनाएँँ पाठकों को गुदगुदाएँगी तथा एक साफ-सुथरे नए समाज की रचना में भी सहायक सिद्ध होंगी ।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश) 244901
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