सवैया /
यह क्षण समक्ष तेरे आया,
इसको तू पूरा जी, प्यारे ।
होठों पर फेर मलाई तू,
जिव्हा पर रख तू घी,प्यारे ।
आनंद प्रवाहित अंतरतम,
उसको बाहर से मत जोड़ो,
भीतर-भीतर रस-रस लेकर
धीरे – धीरे तू , पी प्यारे ।
००००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।